नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर मदरसों की शिक्षा पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं। यही नहीं, आयोग ने मदरसों पर बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन के गंभीर आरोप भी लगाएं हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी लिखित दलीलों में मदरसों में मिलने वाली शिक्षा की आलोचना करते हुए कहा है कि ये संस्थान बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और औपचारिक शिक्षा देने में असमर्थ हैं।
मदरसों में बच्चों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत आवश्यक सुविधाएं और माहौल नहीं मिल पा रहा है, जिससे वे शिक्षा के अधिकार से वंचित हो रहे हैं। आयोग ने आगे कहा, मदरसे शिक्षा के अधिकार कानून के तहत नहीं आते हैं, इसलिए इनमे पढ़ने वाले बच्चों को मिड डे मील, यूनिफॉर्म और प्रशिक्षित शिक्षकों जैसी सुविधाएं नहीं मिलतीं। जो अन्य RTE के दायरे में आने वाले स्कूली बच्चों को मिलती है।
मदरसों में गैर-मुस्लिम बच्चे भी पढ़ रहे – आयोग
आयोग के हलफनामे में इसपर चिंता व्यक्त की गई है कि मदरसों का मुख्य जोर धार्मिक शिक्षा पर ही होता है, जिससे बच्चों की समग्र शिक्षा प्रभावित होती है। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है कि यूपी, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में कई मदरसों में गैर-मुस्लिम बच्चे भी पढ़ रहे हैं, जिन्हें इस्लाम और उसकी धार्मिक परंपराओं की शिक्षा दी जा रही है। यह आर्टिकल 28(3) का उल्लंघन है, जो गैर-मुस्लिम बच्चों पर धार्मिक शिक्षा थोपने से रोकता है।
दारुल उलूम मदरसे की वेबसाइट पर फतवा नाबालिग लड़की के साथ शारीरिक संबंधों को लेकर – आयोग
आयोग ने हलफनामे में विशेष रूप से देवबंद स्थित दारुल उलूम मदरसे की वेबसाइट पर मौजूद आपत्तिजनक कंटेंट का भी हवाला दिया है। आयोग ने कहा मदरसे की वेबसाइट पर एक फतवा नाबालिग लड़की के साथ शारीरिक संबंधों को लेकर दिया गया था, जो भ्रामक और पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन करता है।
पाकिस्तान के रहने वाले एक शख्स के सवाल पर…
इसी तरह दारुल उलूम की वेबसाइट पर एक फतवा पाकिस्तान के रहने वाले एक शख्स के सवाल पर जारी किया गया था जिसमें उस शख्श ने ‘गैर मुसलमानों पर आत्मघाती हमले’ के बारे में सवाल पूछा था। दारुल उलम देवबंद ने इस सवाल को ‘गैर कानूनी’ बताने की बजाय यह बयान जारी किया कि ‘अपने स्थानीय विद्वान से उस बारे में मशवरा करें’।
दारुल उलूम गैर मुसलमानों पर आत्मघाती हमले को सही ठहरा रहा – आयोग
आयोग के मुताबिक दारुल उलूम की तरफ से जारी इस तरह के बयान न केवल गैरमुसलमानों पर आत्मघाती हमले को सही ठहरा रहे हैं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा कर रहे हैं। आयोग का कहना है कि दारुल उलूम इस्लामी शिक्षा का केंद्र होने के चलते इस तरह के फतवे जारी कर रहा है जो कि बच्चों को अपने ही देश के खिलाफ नफरत की भावना से भर रहे हैं।
बता दें हाईकोर्ट ने ‘यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को रद्द कर दिया था। इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। जिसपर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने हलफ़नामा दाखिल किया है।
ये भी पढ़ें : अवैध धर्मांतरण रैकेट मामला; मौलाना कलीम सिद्दीकी, उमर गौतम समेत 12 को उम्रकैद, 4 दोषियों को 10-10 साल कैद की हुई सजा