लखनऊ: दुनिया में कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं… जो जिस क्षेत्र में जाते हैं, आदर्श बन जाते हैं…और हमारी यादों में हमेशा के लिए अटल हो जाते हैं। आज बात कुछ ऐसे ही व्यक्तित्व की हो रही है। वह व्यक्तित्व है…देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी का। अटल जी ने राजनीतिक क्षेत्र में कार्य करने के साथ-साथ पत्रकारिता, लेखन व कवि के रूप में काम किया और खूब नाम कमाया। हालांकि, बात अगर अटल की हो और लखनऊ का नाम न आए तो कुछ अधूरा सा लगता है। लखनऊ अटल जी की कर्मभूमि रही। यहीं से सांसद रहते हुए वह 3 बार देश के प्रधानमंत्री बने।
अटलजी और लखनऊ का नाता बहुत गहरा है। जब देश की राजनीति में बहुत कम लोग उन्हें जानते थे, तब वह लखनऊ आए और लखनऊ ने भी दोनों बांहें फैलाकर उनका स्वागत किया। यहां अलटजी को खूब प्यार मिला। उन्होंने अपना पहला लोकसभा उपचुनाव 1955 में लखनऊ से लड़ा। लेकिन, तब उन्हें निराशा हाथ लगी। तब शायद लखनऊ ने उनके लिए कुछ बड़ा सोच रखा था।
1957 में पहली बार बलरामपुर से सांसद बने अटलजी
देश में 1957 के आम चुनाव की घोषणा हुई। अटल जी ने तब एक साथ यूपी की तीन लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा। जिसमें से बलरामपुर, लखनऊ और मथुरा लोकसभा सीटें शामिल थीं। हांलांकि, तब अटलजी सिर्फ बलरामपुर लोकसभा सीट जीत पाने में सफल रहे। मथुरा से उनकी जमानत जब्त हो गई। जबकि, लखनऊ से उन्हें मामूली अंतर से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन चुनाव हारने के बाद भी अटलजी ने लखनऊ से नाता जोड़े रखा। उनका यहां बराबर आना-जाना और लोगों से मिलना बना रहा। अलटजी को लखनऊ का रहन-सहन, यहां की सभ्यता और खानपान से बेहद लगाव था।
1991 में लखनऊ से चुने गए सांसद
1955 और 1957 में लखनऊ से हार का सामने करने के बाद भी अलटजी ने अपनी कर्मभूमि लखनऊ को ही बनाया। 1957 से 1991 तक की अवधि के दौरान, अटलजी देश की अलग-अलग लोकसभा सीटों से संसद पहुंचते रहे। इस दौरान वह राज्यसभा के भी सदस्य रहे। फिर भी लखनऊ से उनका रिश्ता बना रहा। 1991 में फिर से देश में लोकसभा के चुनाव होने थे। अटलजी ने पहले से मन बना रखा था कि वह अबकी बार लखनऊ से ही चुनाव लड़ेंगे। वह चुनाव लड़े और उन्होंने बड़े अंतर से जीत दर्ज की। इस तरह वह 1991 में पहली बार लखनऊ से सांसद बने। इसके बाद लखनऊ ने अलटजी को इस तरह थामा कि वह यहां के ही होकर रह गए।
लखनऊ से सांसद रहते हुए अटलजी 3 बार बने देश के प्रधानमंत्री
1996, 1998, 1999 और 2004 में अटल जी लगातार 5 बार लखनऊ से लोकसभा के सदस्य चुने गए। यहीं से सांसद रहते हुए वह 3 बार देश के प्रधानमंत्री बने। हालांकि, 2004 में देश में फिर से कांग्रेस की सरकार बनी। जिसके बाद अटलजी ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। अलटजी की लखनऊ में आखिरी जनसभा 2006 में कपूरथला चौराहे पर हुई थी। जिसके बाद उन्होंने किसी भी सार्वजनिक जनसभा को संबोधित नहीं किया।
अलटजी के करीबी रहे यूपी के पूर्व डिप्टी सीएम डॉ दिनेश शर्मा बताते हैं कि अटलजी लखनऊ में इतना लोकप्रिय थे कि लोगों के बीच उनका खास बनने की होड़ लगी रहती थी। वह बताते हैं कि अटलजी को अपने हर कार्यकर्ता का नाम पता था, वह जब किसी को भी बुलाते तो उनका नाम पुकारते थे। देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर पहुंचने के बाद भी, उनके स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया। जब भी कोई लखनऊ से उनसे मिलने दिल्ली जाता तो वह सभी का हालचाल पूछते थे।
अटलजी ने 1960 में चौक में घर-घर जाकर मांगा था वोट
अटलजी के करीबी पूर्व राज्यपाल स्वर्गीय लालजी टंडन 1960 में सभासदी का चुनाव लड़े। तब उन्होंने अटलजी से आग्रह किया कि वह प्रचार के लिए क्षेत्र में समय दें। क्योंकि, लालजी टंडन लखनऊ के चौक में ही रहते थे… और अटलजी 60 के दशक में चौक इलाके में बेहद लोकप्रिय थे। अलटजी ने तब चौक में घर-घर जाकर लालजी टंडन के लिए वोट मांगा, जिसके चलते वह बड़े अंतर से चुनाव जीते।
लखनऊ का खानपान बहुत पसंद करते थे अटलजी
अलटजी को लखनऊ का खानपान बहुत पसंद था। उन्हें लखनऊ के चौक स्थित राजा की ठंडाई बहुत पसंद थी। इसके अलावा राम आसरे की मिठाई, शुक्ला जी चाट उन्हें बहुत पसंद थी। क्योंकि, प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें लखनऊ आने का मौका कम ही मिल पाता था। इसलिए, जब भी कोई लखनऊ से उनसे मिलने दिल्ली जाता, तो वह उससे अपनी मन पसंद खाने-पीने की चीजें मंगवाते थे।