15 अगस्त 1947 को देश स्वाधीन हुआ। लेकिन, उससे एक दिन पहले यानी 14 अगस्त को ऐसी घटना घटी… जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। वह घटना थी, भारत का विभाजन। भारत के दो टुकड़े करने के लिए ब्रितानी हुकूमत ने लंदन से लॉर्ड रैडक्लिफ को भेजा था। रैडक्लिफ की जिम्मेदारी थी कि भारत और पाकिस्तान के बीच भूमि का बंटवारा करे। भारत और पाकिस्तान के बीच भौगोलिक विभाजन हो गया। लेकिन, परिसंपत्तियों का मामला बना रहा। जिसमें करेंसी और सरकारी संसाधन शामिल थे।
भारत-पाकिस्तान के बीच परिसंपत्तियों का बंटवारा करना कठिन कार्य था। जिसके बाद विभाजन की जिम्मेदारी 12 जून 1947 को गठित विभाजन समिति पर आ गई। इस समिति का अध्यक्ष लॉर्ड माउंटबेटन था। वहीं, कांग्रेस की ओर से सरदार वल्लभभाई पटेल और राजेंद्र प्रसाद प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जबकि, मुस्लिम लीग का प्रतिनिधित्व लियाकत अली खान और अब्दुर रब निश्तार कर रहे थे। बाद में निश्तार की जगह मुहम्मद अली जिन्ना ने ले ली। साथ ही पैनल का नाम बदलकर ‘विभाजन परिषद’ कर दिया गया। तब भारत ने पाकिस्तान को अपने परिसंपत्तियों का 17.5% हिस्सा दिया था।
पहले लिख दी गई थी विभाजन की पटकथा
दोनों देशों के बीच विभाजन 1947 में हुआ। लेकिन, इतिहासकारों का कहना है कि इसकी पटकथा बहुत पहले लिखी जा चुकी थी। क्योंकि, अंग्रेज भारत को कभी चैन की सांस लेते हुए नहीं देखना चाहते थे। यही कारण है कि वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने 3 जून 1947 को भारत को 2 हिस्सों में बांटने का एलान कर दिया। इतना ही नहीं उसने रियासतों को अपनी इच्छा के अनुसार, स्वतंत्र रहने या विलय करने का विकल्प दिया। जिसके चलते जम्मू-कश्मीर की समस्या खड़ी हो गई।
1929 से विभाजन की मांग ने पकड़ा जोर
इतिहासकारों का कहना है कि विभाजन की पटकथा 1929 में लिखा गई। तब मोतीलाल नेहरू ने हिंदू महासभा के सामने केंद्रीय संसद में मुसलमानों के लिए 33 % सीटों के आरक्षण का प्रस्ताव रखा। जिसे हिंदू महासभा ने मानने से साफ इंनकार कर दिया। उस दौरान हिंदू महासभा के नेता भारत माता की जय, वंदे मातरम और गौमाता की जय का नारा लगाते थे। मुस्लिम लीग इसे अल्पसंख्यकों के लिए खतरा बताती थी। जिसके बाद मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान बनाने की मांग को और तेज कर दिया।
आजादी तक बन गई थी विभाजन पर सहमति
इन्हीं मांगों के बीच 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया। लेकिन, आजादी से पहले ही भारत और पाकिस्तान के बंटवारे पर सहमति बन गई। लंदन से सिरील रेडक्लिफ को बुलाया गया। जिसे दोनों देशों के बीच विभाजन की जिम्मेदारी सौंपी गई। क्योंकि, इसके पहले सिरील रेडक्लिफ कभी भी भारत नहीं आया था। इसी कारण से उसे यहां की भौगोलिक पृष्ठभूमि के बारे में कोई भी जानकारी नहीं थी। उसने 17 अगस्त 1947 को भारत-पाकिस्तान के बीच विभाजन की रेखा खींच दी। जिसका नाम ‘रेडक्लिफ लाइन’ पड़ा।
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1.46 करोड़ लोग हुए विस्थापित
भारत के विभाजन के बाद बड़ी संख्या में लोग अपने ही देश में शरणार्थी बन गए। कहा जाता है कि उस समय लगभग 1.46 करोड़ लोगों को अपना घर छोड़कर विस्थापित होना पड़ा। इस दौरान सांप्रदायिक दंगे हुए। पाकिस्तान में कट्टरपंथियों द्वारा हिंदुओं की हत्या करके, उनकी लाशें रेलगाड़ियों में भरकर भारत भेजी जा रही थीं। जबकि भारत के मंदिरों और गुरुद्वारों मुस्लिम शरणार्थियों के लिए खोला जा रहा था। दंगों में लगभग 10 लाख लोग मारे गए। जिसमें बड़ी संख्या में हिंदू थे। पाकिस्तान से लाखों लोग पैदल और भूखे बैलगाड़ियों व रेलगाड़ियों से अपनी पैतृक जमीन छोड़कर भारत आ रहे थे। यह दृश्य देखकर आज भी आंखें भर आती हैं।