नई दिल्ली: यूपी के मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट अगले सप्ताह अंतिम सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 5 अप्रैल को इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाई कोर्ट के इस आदेश से 17 लाख छात्रों के भविष्य पर असर पड़ेगा। साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि इस मामले पर विचार करते समय हाई कोर्ट ने कानून की गलत व्याख्या की।
मदरसा संचालक ने सुप्रीम कोर्ट में डाली थी याचिका
एक मदरसे के मैनेजर अंजुम कादरी और अन्य की ओर से दायर याचिका में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले पर सवाल उठाते हुए इसे मनमाना बताया गया है। याचिका में कहा गया है कि इस फैसले के चलते मदरसों में पढ़ रहे लाखों बच्चों के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है। लिहाजा जब तक सुप्रीम कोर्ट मदरसा एक्ट की संवैधानिक वैधता पर फैसला लेता है, तब तक हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगे।
22 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने दिया था आदेश
दरअसल, 22 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ बताया था। मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते ये कानून पारित किया गया था। हाई कोर्ट ने राज्य के मदरसों और उनमें पढ़ने वाले छात्रों की बड़ी संख्या के मद्देनजर यूपी सरकार से कहा था कि वो मरदसों में पढ़ रहे बच्चों को औपचारिक शिक्षा देने वाले दूसरे स्कूलों में शामिल करें। इसके लिए अगर जरूरत हो तो नए स्कूल खोले जाएं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अक्टूबर 2023 में मदरसों की विदेशों से हो रही फंडिंग की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था। एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में 8 हजार मदरसों पर कार्रवाई की सिफारिश की थी। रिपोर्ट के मुताबिक सीमावर्ती इलाकों में 80 मदरसों को 100 करोड़ से ज्यादा का विदेशी फंड मिला है।