कानपुर- अरहर हमारे देश की एक प्रमुख ‘दलहनी फसल’ है, जिसे मुख्य रूप से जुलाई में बोया जाता है। अरहर फसल न सिर्फ दलहन उत्पादन में सहायक होती है, बल्कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर मृदा उर्वरता और उत्पादकता में भी वृद्धि करती है। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर के दलहन अनुभाग के वैज्ञानिक डॉ. अखिलेश मिश्रा ने शनिवार को यह जानकारी दी। डॉ. मिश्रा ने बताया कि वैज्ञानिक विधि से पछेती अरहर की खेती करने पर किसानों को अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है। असिंचित और शुष्क क्षेत्रों में अरहर की खेती बहुत लाभकारी सिद्ध हो सकती है।
जानिए अरहर में कौन-कौन सी होती विटामिंस-
डॉ. अखिलेश मिश्रा ने बताया कि 100 ग्राम अरहर की दाल से ऊर्जा -343 किलो कैलोरी,कार्बोहाइड्रेट- 62.78 ग्राम,फाइबर -15 ग्राम, प्रोटीन- 21.7 ग्राम तथा विटामिंस जैसे थायमीन (B-1) -0.64 3 मिलीग्राम, रिबोफैविविन (B-2)-0.187 मिलीग्राम, नियासिन (B-3)-2.965 मिलीग्राम, तथा खनिज पदार्थ जैसे कैल्शियम 130 मिलीग्राम, आयरन 5.23 मिलीग्राम, मैग्नीशियम 183 मिलीग्राम, मैग्नीज 1.791 मिलीग्राम, फास्फोरस 367 मिलीग्राम, पोटेशियम 1392 मिलीग्राम, सोडियम 17 मिलीग्राम एवं जिंक 2.76 मिलीग्राम आदि पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी है।
डॉ. अखिलेश मिश्रा ने किसानों को सलाह दी है कि अरहर की उन्नतशील प्रजातियां जिनमें नरेंद्र अरहर-2, आजाद अरहर, अमर, पूसा-9, बहार, मालवीय -13, मालवीय- 6 एवं आईपीए-203 प्रमुख हैं। अरहर का बीज 15 से 18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से का कतारों से कतार की दूरी 60-75 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर पर रखकर बुवाई करनी चाहिए। रोगों की रोकथाम हेतु बुवाई के पूर्व ट्राइकोडरमा विरिडी 10 ग्राम प्रति किलो बीज या थीरम तथा 1 ग्राम कार्बेंडाजिम से शोधित करना चाहिए। जिसके बाद 5 ग्राम राइजोबियम + 5 ग्राम पीएसबी कल्चर से प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोयें।
उन्होंने बताया कि बुवाई से पूर्व 20 किलोग्राम नत्रजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश तथा 20 किलोग्राम सल्फर गंधक प्रति हेक्टेयर बीज के नीचे देना चाहिए। 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देने से फसल पैदावार में बढ़ोतरी होती है। यदि किसान भाई वैज्ञानिक विधि से अरहर की खेती करते हैं तो असिंचित क्षेत्रों में 12 से 16 कुंतल प्रति हेक्टेयर तथा सिंचित क्षेत्रों में 22 से 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर अरहर का उत्पादन होता है।
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