सिंधु जल संधि के तहत शर्तों और सुझावों पर होने वाली बातचीत के लिए इस बार पांच साल बाद पाकिस्तान का एक डेलीगेशन जम्मू-कश्मीर पहुंचा है। पाकिस्तानी दल ने यहां किश्तवाड़ के रतले और कीरू में दो हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट का निरीक्षण किया। इस दौरान उनके साथ तटस्थ विशेषज्ञों का दल भी मौजूद रहा। करीब 40 सदस्यों का ये दल यहां 28 जून तक रहेगा और चिनाब घाटी क्षेत्र में निर्माणाधीन विभिन्न बिजली परियोजनाओं का निरीक्षण करके संधि के तहत शर्तों के पालन की जांच करेगा।
ये भी पढ़ें- विकीलीक्स संस्थापक जूलियन असांजे 5 साल बाद ब्रिटिश जेल से रिहा, अमेरिका से समझौते में जासूसी की बात मानी
2019 में आया था पाकिस्तानी दल
दरअसल डेलीगेशन का ये भारत दौरा,, सिंधु जल संधि के तहत तटस्थ विशेषज्ञ कार्यवाही का हिस्सा है। 1960 की संधि के विवाद निपटान के तहत 5 साल से भी ज्यादा समय में किसी पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की ये पहली जम्मू-कश्मीर यात्रा है। नौ साल की बातचीत के बाद भारत और पाकिस्तान द्वारा हस्ताक्षरित संधि में विश्व बैंक एक हस्ताक्षरकर्ता के रूप में शामिल है। ये कई सीमा पार नदियों के पानी के उपयोग के संबंध में दोनों देशों के बीच सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान के लिए एक रूपरेखा स्थापित करता है।
बता दें कि राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने के बाद से पड़ोसी देश से इस नियमित बैठक के लिए अभी तक कोई प्रतिनिधिमंडल नहीं आ रहा था। 2019 में आखिरी बार पाकिस्तानी दल यहां पहुंचा था और तब पकलडुल और लोअल कलनई हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट का निरीक्षण किया था।
2016 में पाकिस्तान ने जताई थी आपत्ति
साल 2016 में पाकिस्तान ने पकलडुल और कलनई प्रोजेक्ट की डिजाइन पर आपत्ति करते हुए विश्व बैंक से अनुरोध किया था कि तटस्थ विशेषज्ञ के माध्यम से समाधान निकाला जाए। बाद में इस अनुरोध को वापस ले लिया गया और मध्यस्थता न्यायालय के माध्यम से निर्णय लेने की मांग की गई।
वहीं भारत ने इस बात पर जोर दिया कि इस मुद्दे को केवल तटस्थ विशेषज्ञ कार्यवाही के माध्यम से हल किया जाना चाहिए। वार्ता विफल होने के बाद विश्व बैंक ने अक्टूबर 2022 में एक तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता न्यायालय के अध्यक्ष की नियुक्ति की। संधि में संशोधन के लिए एक नोटिस जारी करते हुए भारत ने चेतावनी दी कि समान मुद्दों पर इस तरह के समानांतर विचार अतंरराष्ट्रीय जल संधि के किसी भी प्रावधान के अंतर्गत नहीं आते हैं।