अध्यात्म- जीवन में सुख और दुःख हमारे मन के दो पहलू हैं। परिस्थितियों से हमारी मनोदशा बनती है और मनोदशा से सुख या दुःख की अनुभूति होती है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि जाने-अनजाने में हम स्वयं ही अपने भविष्य के निर्माता होते हैं। ग्रह-नक्षत्र केवल भविष्य की सूचना देते हैं, हमें अपने कर्मों से अपना भविष्य निर्माण करना होता है। बबूल का बीज बोकर आम की उम्मीद करना बेकार है, यही दुःख का प्रमुख कारण है।
लेकिन एक बात याद रखना चाहिए कि आम का पेड़ लगाने के बाद भी हमें उसे लालन-पालन करना पड़ता है। जो व्यक्ति सृष्टि के इस सिद्धांत को समझता है, वह सुख-दुःख से परे होकर जीवन में परम शांति प्राप्त करता है। यदि आप किसी को दुःख देने का भाव रखते हैं, तो आप अपने लिए भी दुःख के बीज बो रहे हैं। क्योंकि आपके मन में जो बीज पनपा है, वह आपके ही मन की भूमि पर उगेगा। अगर आप सुखी हैं, तो अपने कारण को जानना चाहिए।
यदि दुखी हैं, तो भी अपने को ही कारण मानना चाहिए। क्योंकि दुःख बाहर से नहीं आता, वह अंदर से उत्पन्न होता है। सुख-शांति लाना पूर्णतः विचारवान व्यक्तियों के हाथ में होता है।सुख न केवल भोग-विलास, धन-दौलत, ऐश और आराम में है, बल्कि सुख का सच्चा स्थान है हमारी आंतरिक शांति और संतुष्टि में। अधिक ताकतवर और उत्कृष्ट अनुभव के लिए, हमें संवेदनशीलता और धैर्य के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना होगा। सुख और दुःख हमारी मनःस्थिति के परिणाम हैं।
जिसमें हम खुद अधिकारी हैं। सुख और दुःख, जीवन की धूप और छाया हैं, जो हमें जीवन की सच्चाई से रूबरू कराते हैं। आनंद को प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है, अपने आंतरिक अस्तित्व को समझने के लिए अपने अंदर की ओर मुड़ना, क्योंकि जब तक हम आनंद के कारण को नहीं समझेंगे, तब तक हमें आनंद स्थायी नहीं होगा।
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