लखनऊ- मैं EVM हूं। लोकसभा की 543 सीटों पर इस बार सकुशल चुनाव सम्पन्न हो गया। लेकिन, मुझ पर सवाल नहीं उठा। मैं बहुत ही खुश हूं कि मुझ पर कोई सवाल नहीं उठाया गया और न ही उठाया जा रहा है। पिछले कुछ चुनावों में जिस प्रकार से मुझ पर सवाल उठाए गए। उसने मुझे काफी परेशान किया। मैं प्रत्येक बार अग्निपरीक्षा से गुजरी। लेकिन, चुनावी मैदान में हार का जिम्मेदार मुझे ही ठहराया जाता रहा। विपक्षी दलों ने इस बार जमीन पर अपने पक्ष में प्रचार किया।
अपने कामों को गिनाया। सफलता मिली। वे मुझे भूल गए। यही तो मैं चाहती थी। लोकतंत्र में लोगों के हाथ में तंत्र की चाबी होती है। लेकिन मुझ पर आरोप लगाकर विपक्षी दल अपनी हार का आकलन ही नहीं करते थे बल्कि चुनाव दर चुनाव यही स्थिति बनती रही। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दौरान भी EVM पर सवाल उठाए गए। एक पूर्व मुख्यमंत्री ने तो यहां तक कह दिया था कि EVM को टेंपर कर रिजल्ट को बदला गया।
हालांकि, ऐसा संभव नहीं? मैंने तो कई बार कहा, मुझें टेंपर करने की कोशिश कर लो। कई तकनीकी विशेषज्ञों के साथ कुछ दलों के नेता आए। कोशिश भी की लेकिन सफल नहीं हो सके। इसके बाद भी हार का जिम्मेदार मुझे ही ठहराया जाता रहा। यूपी- उत्तराखंड चुनाव के बाद भी EVM पर लांछन लगाए गए। विपक्षी दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने तो कहा कि सत्ताधारी दल अपने हिसाब से EVM का उपयोग कर रहे हैं।
इस प्रकार के बयानों ने मुझे हमेशा दुखी किया। सबसे बड़ा दुख तो तब हुआ जब मुझ पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगा दी गई। सुप्रीम कोर्ट में मेरी उपयोगिता पर बहस हुई। वकीलों ने आरोप लगाया कि सत्ता पक्ष EVM का उपयोग सरकार बनाने के लिए करता रहा है।सुप्रीम कोर्ट ने तकनीक के जमाने में वापस बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाने की मांग पर सवाल उठाया। फिर से चुनाव को पुराने दौर में न ले जाने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने EVM प्रतिष्ठा को स्थापित किया। वहीं, देश के सबसे बड़े चुनाव में EVM पर कोई सवाल नहीं उठाया जा रहा है। जो सबसे अधिक प्रसन्नता की बात है।
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