लखनऊ: आज 24 मई को देश भर में नारद जयंती मनाई जा रही है। नारद जी को लोकमंगल का देवता भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, देवर्षि नारद का जन्म ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुआ था। इस तिथि को नारद जयंती के रूप में मनाया जाता है। वैसे तो समाज में देवर्षि नारद को लेकर अनेकों भ्रांतियां हैं। कुछ लोग उन्हें लड़ाई लगाने वाले के तौर पर देखते हैं, तो कुछ लोग उनमें नाटक मंचन के दौरान विदूषक की भूमिका खोजते हैं।
लेकिन, इन सब अवधारणा से अगर हट कर बात करें तो समाज में नारदजी की भूमिका अलग ही दिखती है। नारद जी के सभी कार्य लोकहित व लोकमंगल के ही रहे हैं। शब्द को ब्रह्म मान कर लोक कल्याण में अपनी भूमिका निभाने वाले देवर्षि नारद तीनों लोगों में विचरण करने में सक्षम हैं।
नारदजी को भगवान ब्रह्मा के 7 मानस पुत्रों में से एक माना जाता है। ब्रह्मा जी ने उन्हें सृष्टि को आगे बढ़ाने का कार्य सौंपा था। लेकिन, नारदजी अपने पिता ब्रह्मा की बात न मान कर विष्णु भगवान की भक्ति में लग गए। साथ ही उन्होंने अन्य लोगों को भी मोहमाया छोड़ कर विष्णु भगवान की भक्ति करने के लिए प्रेरित किया। जिससे सृष्टि को आगे बढ़ाने के कार्य में कठिनाइयां आने लगीं।
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नारदजी के इसी बात से नाराज होकर उनके पिता ब्रह्मा ने आजीवन अविवाहित व तीनों लोगों में विचरण करने का श्राप दे दिया। किन्तु नारद जी ने अपने इस श्राप को समाज की भलाई करने का हथियार बना लिया। वह तीनों लोक में विचरण करते रहते और लोगों की समस्याओं का समाधान कैसे हो इसका उपाय बताते। तीनों लोक में भ्रमणशील रहने के कारण उनके पास सभी जानकारियां रहतीं। जिनका उपयोग वह समाज के हित के लिए करते। जिसके कारण उन्हें दुनिया का पहला पत्रकार भी कहा जाता है।