उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग दिन ब दिन बेकाबू होती जा रही है। इसे नियंत्रित करने के लिए पौड़ी जिला प्रशासन ने जंगल में फैली आग को बुझाने के लिए इंडियन एयरफोर्स से मदद मांगी है। इसके लिए पौड़ी के डीएम ने एक पत्र लिखा है। फिलहाल जिला प्रशासन के इस लेटर के बाद वायुसेना का विमान पौड़ी के लिए रवाना हो गया है।
जानकारी के अनुसार सबसे ज्यादा भीषण आग उन वन क्षेत्रों में लगी है, जहां चीड़ के पेड़ हैं। उत्तराखंड वन विभाग के अनुसार, कुमाऊं मंडल में आग लगने के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं, वहीं गढ़वाल मंडल में भी आग लगने की काफी घटनाएं आ चुकी हैं। आग लगने से 749.6375 हेक्टेयर रिजर्व फॉरेस्ट एरिया प्रभावित हुआ है।
सीएम धामी ने मुख्य सचिव को निर्देश जारी करने को कहा
वहीं, उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने मुख्य सचिव राधा रतूड़ी को सभी जिलाधिकारियों को एक हफ्ते का नोटिस देकर जंगलों में फैली आग की निगरानी के निर्देश जारी करने को कहा है। इसके साथ ही सीएम धामी ने सभी जिलाधिकारियों को एक सप्ताह के लिए हर तरह के चारे को जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश देने को भी कहा है। इसके अलावा, शहरी निकायों को जंगलों में या उसके आसपास अपने ठोस कचरे को जलाने पर प्रतिबंध लगाने के लिए भी कहा गया है।
क्या है जंगलों में आग लगने का कारण ?
उत्तराखंड के 44.5 फीसदी क्षेत्रफल में जंगल मौजूद है। भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य का वन क्षेत्र 24,305 वर्ग किमी है। हिमालयी क्षेत्र में लंबे समय तक शुष्क मौसम और अतिरिक्त बायोमास आग की घटना में योगदान का एक कारण है। प्राकृतिक कारणों की बात करें तो सूखे पेड़ों या बांस के रगड़ खाने या फिर पत्थरों से निकली चिंगारी और बिजली गिरने की वजह से जंगल में आग लगने की घटना घटित होती है। इसके अलावा राज्य में मुख्य रूप से 3.94 लाख हेक्टेयर में फैले अत्यधिक ज्वलनशील चीड़ के पेड़ भी हैं।
इसके अलावा,, पहाड़ियों पर रहने वाले ग्रामीण नई घास उगाने के लिए भी जंगल को जलाते हैं। जंगलों के पास जलती हुई बीड़ी या अलाव को छोड़ने जैसी घटनाएं भी आग को बढ़ावा देने में मदद करती हैं।