केरल में शुक्रवार की रात को त्रिशूर पूरम पर्व की धूम रही। करीब 200 साल पुराने इस पर्व में हजारों लोग शामिल हुए। इसे प्रसिद्ध वडक्कुनाथन मंदिर के विशाल मैदान में पूरी भव्यता के साथ आयोजित किया गया। इसमें सजे हुए हाथियों की परेड और पारंपरिक ताल प्रदर्शन ने वहां मौजूद सभी लोगों को मंत्रमुग्ध किया।
हालांकि, खबरों की मानें तो पर्व के दौरान रात में होने वाली आतिशबाजी को लेकर तिरुवंबडी देवास्वोम के सदस्यों की पुलिस के साथ बहस हो गई थी। इसके कारण जो आतिशबाजी सुबह 3 बजे होनी थी, वह सुबह 7 बजे के करीब हुई।
त्रिशूर पूरम उत्सव का सबसे रंगीन कार्यक्रम कुदामट्टम है। इस अनुष्ठान में 15 हाथियों की दो पंक्तियां आमने-सामने खड़ी रहती हैं। इस दौरान एक के बाद एक डिजाइनर छतरियों को प्रदर्शित किया जाता है। यह त्योहार तिरुवंबडी और परमेक्कावु मंदिरों के बीच मैत्रीपूर्ण प्रतिद्वंद्विता और सौहार्द्र का प्रतीक है।
क्या है त्रिशूर पूरम पर्व
त्रिशूर पूरम पर्व केरल का प्रसिद्ध उत्सव है। यह परंपरा और अपनी संस्कृति को पेश करने का एक अद्भुत तरीका है। इसे अप्रैल-मई के महीने में आयोजित किया जाता है। इस पर्व में सजे-धजे हाथियों का प्रदर्शन, रंगीन छतरियां और संगीत होता है।
त्रिशूर पूरम पर्व का इतिहास 200 साल से भी पुराना है। इसकी स्थापना 1790 से 1805 तक कोचीन साम्राज्य के शासक शक्तिन थंपुरन ने की थी। त्रिशूर पूरम पर्व के दौरान आसपास के सभी मंदिरों में भव्य पूजा कराई जाती है। यह त्योहार अपने विस्तृत आतिशबाजी प्रदर्शन के लिए भी प्रसिद्ध है, जिसे वेदिकेट्टू के नाम से जाना जाता है।