Varanasi News- 104 साल के निरंजनी अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी रामचंद्र गिरी रविवार को ब्रह्मलीन हो गए। वाराणसी के बिरदोपुर स्थित कैलाश मठ से उनके भक्तों ने उनके पार्थिव शरीर संग शोभायात्रा निकाली। महामंडलेश्वर ने तीन साल से अन्न ग्रहण नही किया था। उन्होंने अन्न का त्याग कर दिया था। वह मूल रूप से गुजरात के रहने वाले थे और गुजरात पुलिस विभाग में कार्यरत थे। अध्यात्म में गहरी रुचि होने की वजह से उन्होंने गृहस्थ जीवन से संन्यास ले लिया था। बता दें कि 29 अप्रैल को श्रद्धांजलि समारोह व संत समागम आयोजित होगा। इसमें देशभर के संत-महंत व महामंडलेश्वर शामिल होंगे।
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बता दें कि स्वामी रामचंद्र का जन्म गुजरात के गांधी नगर के विलोदरा गांव में हुआ था। शिक्षा ग्रहण करने के बाद वह गुजरात पुलिस में भर्ती हो गए। कुछ समय तक उन्होंने पुलिस विभाग में सेवा दी। इसके बाद उनका मन भक्ति में रम गया। उन्होंने नौकरी छोड़ दी और बिहार के मगध पहुंच गए। वहां गंगा तट पर वट वृक्ष के नीचे 12 वर्षों तक तपस्या की। भिक्षाटन के साथ लोगों को गीता का उपदेश देने लगे। कुछ समय बाद वह साल 1949 में काशी आ गए। उनकी संत सेवा भावना से प्रभावित होकर कैलाश मठ के तत्कालीन महामंडलेश्वर ने 1980 में आश्रम की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी। उनके उत्तराधिकारी महामंडलेश्वर आशुतोषानंद गिरी ने बताया कि स्वामी रामचंद्र गिरी निरंजनी अखाड़े के सबसे वरिष्ठ महामंडलेश्वर थे।
बता दें कि उन्होंने करीब 3 साल से अन्न का त्याग कर रखा था, जिसकी वजह से वह काफी कमजोर हो गए थे। कमजोरी के कारण रविवार को वह ब्रह्रालीन हो गए। सोमवार को केदारघाट पर उन्हें जलसमाधि दी गई। मृत्यु के उपरांत षोडशी के दिन यानी 29 अप्रैल को श्रद्धांजलि समारोह व संत समागम आयोजित होगा। इसमें देशभर के संत-महंत व महामंडलेश्वर शामिल होंगे।