अमरनाथ यात्रा 2024: जम्मू-कश्मीर में हर साल श्रद्धालु बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए जाते हैं। बेहद दुर्गम पहाड़ियों से होते हुए शिव भक्त अमरनाथ की यात्रा करते हैं। इस दौरान रास्ते में यात्रियों की सुरक्षा के लिए सेना के जवानों का कदम-कदम पर पहरा रहता है। इन जवानों के कड़े सुरक्षा घेरे में आगे बढ़ते हुए ही लोग भगवान भोलेनाथ की बर्फ से बनने वाली शिवलिंग के दर्शन कर पाते हैं।
इस बार 29 जून से 19 अगस्त तक चलेगी अमरनाथ यात्रा
अमरनाथ यात्रा हर साल जून-जुलाई और अगस्त महीने में चालू होती है। इस बार ये यात्रा 29 जून से शुरू होकर 19 अगस्त तक चलेगी।इसके लिए आज 15 अप्रैल से रजिस्ट्रेशन भी शुरू हो गए हैं। इस बार अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वाले करीब 6 लाख यात्रियों के लिए इंतजाम किए जा रहे हैं। यात्रा के लिए जरूरी मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाने की प्रक्रिया भी चालू हो गई है।
श्रद्धालुओं की हर तरह से मदद करते हैं सेना के जवान
समुद्र तल से 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बाबा बर्फानी की यात्रा के दौरान कई बार मौसम और प्राकृतिक आपदा श्रद्धालुओं के लिए खतरा बन जाती है। अमरनाथ यात्रा के दौरान कठिन भौगोलिक परिस्थितियों और आतंकियों से शिव भक्तों को बचाते हुए भारतीय सेना के हिमवीर उन्हें उनके गंतव्य तक पहुंचाने में अपना अहम योगदान देते हैं। कदम-कदम पर खतरे को भांपते हुए वे यात्रा को आगे बढ़ाते हैं।
भारतीय सेना के जवान श्रद्धालुओं की हर तरह से मदद करते हैं। सेना के जवान अमरनाथ यात्रियों को स्वास्थ्य सेवा, खाने पीने की वस्तुएं, आक्सीजन या आपात स्थिति में ठहराने की भी व्यवस्था करती है। प्राकृतिक आपदा के दौरान अगर कोई श्रद्धालु कहीं फंस जाए तो उसे भी भारत के ये वीर सैनिक उन्हें सुरक्षित स्थान तक पहुंचाते हैं। अमरनाथ यात्रा के दौरान कई स्थानों पर ग्लेशियर हैं, जिनसे कई बार बर्फ भी पिघलती है और वहां हादसा होने की आशंका बनी रहती है। यात्रियों के गुजरने के लिए कई स्थानों पर अस्थायी लकड़ी के पुल भी बने होते हैं। इन अस्थायी पुलों के टूटने पर यात्रियों को सुरक्षित निकालने से लेकर उन्हें मेडिकल और अन्य तरह की सुविधा देकर सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने का सारा जिम्मा सेना के ये वीर ही उठाते है।
अमरनाथ यात्रा के हैं दो प्रमुख रूट
पहलगाम रूट: इस रूट के जरिए गुफा तक पहुंचने में 3 दिन का समय लगता है। यात्रा में खड़ी चढ़ाई नहीं है। पहलगाम से पहला पड़ाव चंदनवाड़ी है। यहां से चढ़ाई शुरू होती है। 3 किमी की चढ़ाई के बाद यात्रा पिस्सू टॉप पहुंचती है। यहां से पैदल चलते हुए शाम तक यात्रा शेषनाग पहुंचती है। ये सफर करीब 9 किमी का है। अगले दिन शेषनाग से यात्री पंचतरणी जाते हैं, जो शेषनाग से करीब 14 किमी है। पंचतरणी से गुफा सिर्फ 6 किमी ही रह जाती है।
बालटाल रूट: समय कम होने पर इस रूट के जरिए बाबा बर्फानी की गुफा तक पहुंचा जा सकता है। इसमें सिर्फ 14 किमी की चढ़ाई ही है, लेकिन ये एकदम खड़ी चढ़ाई होती है। इसलिए बुजुर्गों को इस रास्ते पर काफी दिक्कतें होती हैं। इस रूट पर संकरे रास्ते और कई खतरनाक मोड़ भी आते हैं।