Lucknow News- चैत्र नवरात्र के सातवें दिन मां दुर्गा के सप्तम् स्वरूप माता कालरात्रि की पूजा होती है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है और इनका वर्ण अंधकार की भांति काला है। इनके केश बिखरे हुए हैं और कंठ में विद्युत की तरह चमक वाली माला है। देवी कालरात्रि मां के तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल व गोल हैं। जिनमें से बिजली की भांति किरणें निकलती रहती हैं। इनकी नासिका से श्वास तथा निश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। मां का यह रूप भय उत्पन्न करने वाला है। बता दें कि माता का यह स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है, जबकि माता के इस रुप की उपासना करने से भक्तों का सभी दोष दूर होते हैं।
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धार्मिक मान्यता के अनुसार कालरात्रि मां अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करती हैं। इस कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। दुर्गा पूजा के सप्तम दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में अवस्थित होता है। देवी कालरात्रि का वर्ण काजल के समान काले रंग का है, जो अमावस्या की रात्रि से भी अधिक काला है। मां कालरात्रि अपने तीनों बड़े-बड़े उभरे हुए नेत्रों से भक्तों पर अनुकम्पा की दृष्टि रखती हैं। देवी की चार भुजाएं हैं। दायीं ओर की ऊपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। माता की बायीं भुजा में तलवार और खड्ग धारण है। देवी के बाल खुले हुए हैं और हवाओं में लहरा रहे हैं। देवी कालरात्रि गर्दभ पर सवार हैं।
दुर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है। सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक मध्य रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं। इस दिन मां की आंखें खुलती हैं। सप्तमी की रात्रि को सिद्धियों की रात भी कहा जाता है। कुण्डलिनी जागरण हेतु जो साधक साधना में लगे होते हैं, इस दिन सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं। सप्तमी को देवी की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा भी अवश्य करनी चाहिए।
देवी कालरात्रि का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।