Kushinagar News: अब वह दिन दूर नहीं, जब पूर्वांचल का काला नमक चावल देश-विदेश में अपनी खुशबू बिखेरेगा। स्वाद, सुगंध और पोषण के मामले में बेजोड़ इस चावल की खेती अब बड़े पैमाने पर शुरू होने जा रही है। सब कुछ ठीक रहा तो यहां के किसान काला नमक चावल विदेश निर्यात करने की स्थिति में होंगे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने पूर्वांचल के 11 जिलों की जलवायु और मिट्टी के अनुरूप दो प्रजातियां विकसित की हैं।
पूसा नरेंद्र और पूसा सीडीआर केएन –2 नामक सीड कुशीनगर समेत 11 जनपदों में चले लंबे समय तक चले शोध का परिणाम है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने खामियां युक्त परंपरागत काला नमक की अपेक्षा अन्य बेहतर किस्म के उत्पाद के लिए के लिए जीआई टैगिंग के माध्यम से कुशीनगर, सिद्धार्थनगर, गोंडा, बहराइच, फैजाबाद, गोरखपुर, देवरिया, महराजगंज, श्रावस्ती स्थल चयन किया गया। इन सभी जगहों पर अनुसंधान केंद्र स्थापित कर 5 वर्षों तक शोध किया गया।
जिसमें बेहतर किस्म उभरकर सामने आई। उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए कृषि अनुसंधान परिषद ने काला नमक चावल सहित चकिया (सोनभद्र) में उत्पादित आदम चीनी चावल को भारत सरकार से निर्यात के लिए मिलने वाले एच एस कोड सर्टिफिकेट के लिए प्रत्यावेदन भेजा है।
बीते दिनों ने कुशीनगर में आयोजित कृषि मेले आए भारतीय कृषि अनुसंधान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.वैभव कुमार सिंह ने बताया कि पूसा नरेंद्र और पूसा सीडीआर केएन –2 की प्रजातियों की नर्सरी आद्रा नक्षत्र (20–25 जून) के लगभग तैयार की जाती है।
15–20 जुलाई तक रोपाई की जाती है। 10–15 अक्तूबर तक फसल में फ्लावरिंग हो जाती है। प्रति एकड़ उत्पादन 15–18 कुंतल है।
दोनों प्रजातियां पूरी तरह रोग रोधक हैं। झुलसा रोग , झोका रोग का इस पर प्रभाव नहीं हैं। फसल की ऊंचाई परंपरागत फसल से नीची है। जिससे इसके गिरने का खतरा नहीं है। बीज के लिए किसान पूसा और क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं।
बौद्ध देशों में है भारी मांग-
इस चावल का इतिहास 2500 वर्ष पुराना है बताया जाता है। बौद्ध इसे बुद्ध के महाप्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। बौद्ध भिक्षु अशोक बताते हैं। सिद्धार्थनगर जनपद में यह चावल गौतम बुद्ध के जमाने से उगाया जा रहा है। चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृत्तांत में इसका उल्लेख किया है। बौद्ध भिक्षु बताते हैं कि इस चावल की मांग जापान, म्यांमार, श्रीलंका, थाइलैंड और भूटान सहित कई बौद्ध देशों में है।
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