Lahkhimpur News- हिन्दू धर्म में
होली त्योहार का बहुत ही खास और महत्वपूर्ण स्थान है। रंगों का यह त्योहार प्रेम
और एकता का प्रतीक है। इस दिन लोग सभी तरह के आपसी मन-मुटाव को मिटाकर एक-दूसरे को
रंग व गुलाल लगाते हैं और होली की शुभकामनाएं देते हैं। इस वर्ष होलिका दहन का
मुहूर्त और इस त्योहार की विशेषताएं पंडित कमल किशोर मिश्रा द्वारा बताई गई।
उन्होंने बताया कि होलिका दहन भद्रा में नहीं करना चाहिए, भद्रा के उपरांत ही होलिका
दहन रात्रि में करें।
यह भी पढ़ें- खास अंदाज में मनाई जाती है कानपुर की होली, अंग्रेजी हुकुमत के अत्याचार से नाराज नौजवानों ने शुरु की थी परम्परा
होली त्योहार को लेकर उन्होंने बताया कि
फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की रात होलिका दहन किया जाता है। इसके अगले दिन
अबीर-गुलाल के साथ होली मनाई जाती है। हिंदू धर्म के अनुसार होलिका दहन को बुराई
पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। होली एक सांस्कृतिक, धार्मिक और पारंपरिक त्योहार है।
बता दें कि पंचांग के अनुसार 24 मार्च को सुबह 9
बजकर 23 मिनट से होली शुरु
होगी। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 25
मार्च को दिन के 11 बजकर 31 मिनट पर होगा। पं कमल किशोर मिश्र बताते
हैं कि शास्त्रीय नियमों का पालन करते हुए इस साल होलिका दहन रविवार को यानी कि 24 मार्च को रात्रि व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा तिथि को भद्रा काल
के बाद रात्रि 10 बजकर 37 मिनट के बाद किया
जाना शास्त्र के अनुसार है। प्रायः फाल्गुन पूर्णिमा की रात्रि
होलिका दहन तथा चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि को रंगोत्सव का पर्व मनाया जाता
है। काशी की
परंपरा के अनुसार होलिका दहन के बाद सुबह रंगोत्सव पर्व मनाया जाता है। काशी में 25 मार्च सोमवार को रंगोत्सव पर्व मनाया जाएगा।
बता दें कि होली का त्योहार भारतवर्ष
में अति प्राचीनकाल से मनाया जाता आ रहा है। इतिहास की दृष्टि से देखें तो यह
वैदिक काल से मनाया जाता आ रहा है। हिन्दू मास के अनुसार होली के दिन से नए संवत
की शुरुआत होती है। धार्मिक
मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन और होली के दिन भगवान श्री कृष्ण, श्री हरि और कुल देवी-देवताओं की पूजा करने से सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश
हो जाता है और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस पर्व को बुराई पर
अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।