हाईकोर्ट ने निष्पक्ष जांच करने की मांग वाली याचिका को किया खारिज
प्रयागराज- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जांच के दौरान आरोपी को सुनने का कोई अधिकार नहीं है। वह केवल इस आधार पर निष्पक्ष जांच की मांग नहीं कर सकता कि उसके अनुसार मामला जांच के लिए गलत तरीके से अपराध शाखा को सौंप दिया गया है।
मौजूदा मामले में याची शिकायतकर्ता है। बाद में उसे उसी प्राथमिकी में जांच के दौरान आरोपी बनाया गया। कोर्ट ने कहा कि याचिका के रिकॉर्ड को देखने पर अपराध शाखा से जांच वापस लेने और कानून के मद्देनजर इसे किसी अन्य एजेंसी को स्थानांतरित करने का कोई आधार नहीं बन रहा है। लिहाजा, याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिरला और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार-चतुर्थ ने प्रीति सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि याची आरोपी के रूप में पहले भी प्राथमिकी को चुनौती दे चुकी है। लेकिन, उसने इसे वापस ले लिया था। कोर्ट ने उसे नए सिरे से फाइल करने की स्वतंत्रता नहीं दी थी। इससे यह स्पष्ट है कि आरोपी द्वारा निष्पक्ष जांच के मांग की याचिका विचारणीय नहीं है।
मामले में जौनपुर के बदलापुर थाने में धोखाधड़ी, कागजों में हेराफेरी करने सहित आईपीसी की विभिन्न धाराओं में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। जांच के दौरान याची का नाम सामने आया है। याची के अधिवक्ता का कहना है कि याची एक महिला है, जो असामाजिक तत्वों से लड़ रही है और वास्तव में उसने पहली प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई थी। उसकी गिरफ्तारी से अपराध की जांच और वास्तविक दोषी प्रभावित होंगे। आरोपी बेदाग छूट जाएंगे। प्रथम सूचना रिपोर्ट में नामित आरोपी बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं और इसलिए, वे अपराध की निष्पक्ष जांच से बच रहे हैं और इसे गलत इरादे से अपराध शाखा में स्थानांतरित कराने में सफल रहे हैं।
अब याची को वर्तमान में आरोपी बना दिया गया है। लिहाजा, निष्पक्ष जांच के लिए एसपी जौनपुर को आदेश दिया जाए और अपराध शाखा से हो रही जांच को रोक दिया जाए। याची की ओर से इसके लिए कई मामलों का हवाला भी दिया गया लेकिन कोर्ट ने कहा कि आरोपी जांच के दौरान निष्पक्ष जांच करने के लिए परमादेश जारी करने की मांग नहीं कर सकता है। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।