अंग्रेजों के भगाने के लिए क्रांतिकारियों ने छेड़ी थी बड़ी जंग
हमीरपुर- भारत छोड़ो आन्दोलन को लेकर उत्तर प्रदेश के हमीरपुर समेत समूचे बुन्देलखंड क्षेत्र में अंग्रेज सैनिकों ने बगावत करने वालों पर बड़ा अत्याचार किया था। अंग्रेज अफसरों की बर्बरता से गांव के गांव खाली हो गए थे। लोग उनके अत्याचारों से बचने के लिए खेतों और खलिहानों में ठिकाना बनाने को मजबूर हुए थे। अंग्रेज अफसरों ने एक क्रांतिकारी पर दो हजार रुपये और बन्दूक देने का ईनाम रखा था। क्रांतिकारी की वयोवृद्ध पत्नी स्वाधीनता आन्दोलन की चर्चा होने पर सिहर उठीं।
हमीरपुर जिले के मिश्रीपुर गांव निवासी डा. जयकरन सिंह गौर सौ बीघे जमीन के काश्तकार थे। गांव में खेतीबाड़ी के बीच भारत छोड़ो आन्दोलन में इन्होंने अपने कई साथियों के साथ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत की तो ये अंग्रेज अफसरों के निशाने पर आ गए। अंग्रेज फौजों से बचने के लिए इन्होंने गांव छोड़कर जंगल में शरण ली थी। बताते हैं कि महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आन्दोलन में जयकरन सिंह अंग्रेजों के खिलाफ झंडा उठाकर सड़क पर आए तो इन्हें सबक सिखाने के लिए अंग्रेज फौजों को लगाया गया।
इनकी बुजुर्ग पत्नी विजय कुमारी गौर व पुत्र राजेन्द्र सिंह गौर ने बताया कि अंग्रेज अफसरों ने गांव के लम्बरदार और नवाबों से मिलकर आन्दोलन करने वालों पर बड़ा जुल्म ढाया था। बताया कि भारत छोड़ो आन्दोलन के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जयकरन सिंह गौर अपने परिवार सहित हमीरपुर शहर में रहने लगे थे। वह आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से लोगों का इलाज भी करते थे।
तिरंगा उठाने पर 11 लोगों की की गई थी सामूहिक हत्या
105 साल की बुजुर्ग विजय कुमारी सिंह गौर ने बताया कि पति डा.जयकरन सिंह गौर को पकड़ने के लिए अंग्रेज सैनिक गांव-गांव तक दौड़ लगाते थे। मिश्रीपुर गांव से पच्चीस तीस किमी दूर कदौरा क्षेत्र के हरचरनपुर गांव में अंग्रेजों के खिलाफ लोगों ने तिरंगा उठाकर हुंकार भरी तो अंग्रेज सैनिकों ने घेरकर गोलियां बरसाईं जिसमें 11 लोग मारे गए थे। बताया कि इस घटना के बाद पूरे क्षेत्र में लोगों का आक्रोश और गहरा हो गया था और हजारों लोग क्रांतिकारियों के साथ सड़कों पर आ गए थे। क्रांतिकारी के बड़े पुत्र राजेन्द्र सिंह ने बताया कि क्रांतिकारी जयकरन सिंह गौर को घुड़सवार अंग्रेज सैनिकों ने पकड़कर जेल भेजा था। उन्हें बड़ी यातनायें दी गई थीं।
क्रांतिकारी पर बन्दूक व दो हजार रुपये का रखा था ईनाम
बुजुर्ग विजय कुमारी गौर ने बताया कि क्रांतिकारी पति के पीछे अंग्रेज सैनिकों को लगाया गया था। इतना ही नहीं एक बन्दूक व दो हजार रुपये का ईनाम भी उन पर रखा था। बताया कि विदेश से अंग्रेज अफसर पत्यौरा रेलवे स्टेशन के रास्ते आकर गांवों में घरों पर घुस जाते थे और सम्पत्ति लूटकर ले जाते थे। महिलाओं पर भी बड़ा अत्याचार किया गया था। बताया कि चौदह साल की उम्र में शादी होने के बाद भी अंग्रेज सैनिकों का खौफ समाया था। घरों में आकर सैनिक घुस जाते थे और महिलाओं से अभद्रता करते थे। बताया कि क्रांतिकारी पति को भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने पर शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान किया गया। उन पर बड़ा अत्याचार हुआ था।
महात्मा गांधी ने गांवों में बांटे थे सूत काटने के लिए चरखे
विजय कुमारी गौर ने बताया कि उन्हें याद है कि जब मायके में थीं तब महात्मा गांधी गांव आए थे। उन्होंने लोगों में आजादी के लिए जोश भरा था। सूत काटने के लिए चरखे बांटे थे। गांवों के लोग चरखे से सूत कातकर मारकीन बनाते थे। इस मारकीन का कुरता पहनकर अंग्रेजों से लोग मोर्चा लेते थे। उन्होंने बताया कि अंग्रेजों के जाने के बाद गांव और हमीरपुर शहर में क्रांतिकारियों ने तिरंगा फहराकर जश्न मनाया था। पांच पुत्रों की मां यह वयोवृद्ध अब दादी से परदादी बन चुकी हैं। तीसरी पीढ़ी के बच्चों के साथ यह अपना जीवन आज भी बड़े ही उत्साह से काट रही हैं। ये आज भी पूरी तरह से स्वस्थ हैं।