आज नागपंचमी के मौके पर बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में पारंपरिक तरीके से घर-घर नाग देवता और भगवान शिव की पूजा हुई। पर्व पर विधि विधान से नागदेवता के चित्र की पूजा कर उन्हें प्रतीक रूप से पंचामृत, घृत, कमल, दूध, लावा अर्पित किया गया। इसके बाद श्री काशी विश्वनाथ मंदिर सहित छोटे-बड़े शिवालयों में भी पूजा की थाली लेकर पहुंचे श्रद्धालुओं ने भगवान शिव और उनके गले में लिपटे सर्प को बेल पत्र, धतूरा, फूल, हल्दी चावल, दूध चढ़ाकर उनका विधि विधान से पूजन किया।
नागपंचमी पर कई घरों में परिजनों की कालसर्प योग की शांति के लिए नाग देवता सहित राहु-केतु ग्रह की भी पूजा की गयी। घरों में तरह-तरह के पकवान बनाकर नागदेवता को भोग लगाया गया। पर्व पर सपेरे टोकरी में नाग लेकर गली-गली लोगों को दर्शन करा कर दक्षिणा मांगते रहे। पर्व पर परम्परानुसार दोपहर में मल्लयुद्ध, दंगल के प्रदर्शन की तैयारी भी चलती रही। अखाड़ों में पहलवान मिट्टी की पूजा-पाठ के बाद कुश्ती और अन्य शारीरिक दमखम प्रतियोगिता की तैयारियों में लगे रहे। युवा पहलवान अखाड़ों में दण्ड बैठक करते दिखाई दिए। यह नजारा नगर के प्रमुख अखाड़ों रामसिंह, गयासेठ, पंडाजी का अखाड़ा, अखाड़ा मानमंदिर, बबुआ पांडेय अखाड़ा, अखाड़ा बड़ा गणेश, अखाड़ा जग्गू सेठ, अखाड़ा रामकुंड, लालकुटी व्यायामशाला, कालीबाड़ी, अखाड़ा गैबीनाथ, अखाड़ा तकिया में दिखा। नागपंचमी पर्व पर परंपरानुसार जैतपुरा के नागकूप स्थित नागेश्वर महादेव के दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। भोर में मंगला आरती के बाद जैसे ही पट खुला तो दरबार में लावा-दूध चढ़ाने के लिए श्रद्धालु उमड़ पड़े। शाम को इसी स्थान पर शास्त्रार्थ के लिए संस्कृत के विद्वानों का जमावड़ा होगा। नागकूप शास्त्रार्थ समिति की ओर से आयोजित सभा में संस्कृत के विद्वान शामिल होंगे। बता दें कि नागकूप पर शेषावतार महर्षि पतंजलि ने अपने गुरु महर्षि पाणिनी के व्याकरण अष्टाध्यायी पर महाभाष्य रचा था। योग सूत्र की रचना उन्होंने कभी इसी स्थान पर की थी। यहां नाग पंचमी पर शास्त्रार्थ की परंपरा का इतिहास है।