उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन को विश्व बैंक के लोन की किश्तें
चुका पाना अब दिनों दिन चुनौती साबित होता जा रहा है। मेट्रो में सफर करने वाले यात्रियों
की संख्या और आय के स्रोत जिस गति से बढ़ने चाहिए, ऐसा संभव नहीं हो पाया है।
हालांकि अगस्त महीने में 22 लाख से ज्यादा यात्रियों ने मेट्रो से सफर करके यूपीएमआरसी
को थोड़ी राहत जरूर दी, लेकिन ये नाकाफी है। देखा जाए तो कर्ज को चुकाने के हिसाब
से यात्रियों की संख्या काफी कम है।
दरअसल कोरोना के चलते लखनऊ मेट्रो की हालत और भी खस्ता हो गई थी,
जिससे घाटा और ज्यादा बढ़ गया और मेट्रो पर बड़ा कर्ज चढ़ गया। लखनऊ में मेट्रो के
घाटे में पहुंचने का एक कारण ये भी है कि यहां पर पहले फेज़ में एयरपोर्ट से मुंशी
पुलिया तक ही मेट्रो दौड़ पाई है, जबकि दूसरे फेज़ की नींव तक नहीं डाली जा सकी
है। अगर दूसरे फेज़ का काम पूरा हो जाता और मेट्रो संचालित होने लगती तो घाटे के
बजाए मेट्रो फायदे में हो सकती थी।
यूपीएमआरसी को साल 2017-18 में यात्री आय सिर्फ 4.35 फीसदी थी। साल
2018-19 में आय में थोड़ा इज़ाफा हुआ और ये 10.80 फीसदी तक पहुंची। मेट्रो की तरफ
यात्रियों का रुझान सबसे ज्यादा साल 2019-20 में बढ़ा और यात्रियों से आने वाली आय
का ग्राफ 54.73 फीसदी तक जा पहुंचा। इसके बाद कोरोना की लहर आ गई और मेट्रो का
संचालन रोकना पड़ा। नतीजा ये हुआ कि 2020-21 में इनकम का आंकड़ा 15.94 फीसदी ही रह
गया। हालांकि अब 2022-23 में मेट्रो में यात्रियों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है,
जिससे आय में भी इजाफा होने लगा है। हालांकि जिस तरह का मेट्रो संचालन में खर्च है,
उसके मुताबिक यह आय कम ही जान पड़ती है।