बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी में लोलार्क छठ पर्व पर लाखों नि:संतान दंपतियों ने कड़ी सुरक्षा के बीच भदैनी स्थित प्राचीन कुण्ड में एक-दूसरे का हाथ पकड़कर आस्था की डुबकी लगाई। कुंड में डुबकी लगाने के बाद श्रद्धालुओं ने अपने गीले वस्त्र और आभूषण कुंड में ही परम्परानुसार छोड़ दिए। इसके बाद नुकीली सुईयों से बंधे फल सूर्य देव को चढ़ाकर सन्तान प्राप्ति के लिए प्रार्थना की।
कुंड में स्नान के लिए पर्व की पूर्व संध्या से ही हजारों दम्पति लगभग दो किलोमीटर की लम्बी लाइन में खड़े हो गए थे। देखते-देखते श्रद्धालुओं की पंक्ति सोनारपुरा तक पहुंच गई। यहां उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड के भी श्रद्धालु स्नान के लिए आए हैं। काशी में मान्यता है कि लोलार्क कुण्ड में भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर सूर्य की पहली किरण के साथ स्नान करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ऐसी मान्यता है कि देवासुर संग्राम के समय भगवान सूर्य के रथ का पहिया इसी स्थान पर गिरा था। इससे ही कुंड का निर्माण हुआ था। इसी स्थान पर लोलार्क नाम के असुर का भगवान सूर्य ने वध किया था। मान्यता ये भी है कि महाभारत काल में कुंती को सूर्य उपासना से ही दानवीर कर्ण जैसे पुत्र की प्राप्ति हुई थी। लोलार्क कुंड में व्रत, अनुष्ठान, स्नान-दान और लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन से भगवान सूर्य की कृपा होती है और गोद अवश्य भर जाती है। इस कुण्ड का जीर्णोद्धार महारानी अहिल्या बाई होलकर, अमृत राव और कूंच बिहार स्टेट के महाराज ने करवाया था।