कानपुर- कुष्ठ रोगी खोज महाअभियान के तहत कानपुर में इस वित्तीय वर्ष में कुल पांच लाख 85 हजार लोगों की जांच के दौरान 1379 संदिग्ध रोगी पाए गए। 18 कुष्ठ रोगी मिले। यह जानकारी शुक्रवार को जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ. महेश कुमार ने दी। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम के तहत वित्तीय वर्ष 2023-24 में एक सितम्बर से शुरू हुआ महा अभियान पूरे माह चलेगा। हालांकि कानपुर में पहले से 185 कुष्ठ रोगियों का उपचार जारी है।
कुष्ठ रोग को लेकर फैली हैं भ्रांतियां
सी.एम.ओ. मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आलोक रंजन ने बताया कि समाज में कुष्ठ रोग को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। वे पूरी तरह से गलत हैं। कुष्ठ रोग छुआ-छूत की बीमारी नहीं है। पहले के लोगों ने यह भ्रांति फैला रखी है। यह भी आवश्यक नहीं है कि परिवार के किसी सदस्य को यह बीमारी थी जो उसके संतान में हो जाए। यह सोच पूरी तरह से गलत साबित हुई है। यह जानकारी एक शोध के दौरान सामने आ चुकी है।
छुआछूत से नहीं होता है कुष्ठ रोग
जिला कुष्ठ अधिकारी डॉ. कुमार ने बताया कि कुष्ठ रोगियों से भेदभाव नहीं करना चाहिए। हम लोगों ने अभी तक घर-घर जाकर जो सर्वे किया है। उसमें भी यह बात सामने आई है कि जो नए मरीज मिल रहे हैं, उनके साथ ऐसी कोई समस्या नहीं थी, जो समाज में फैली हुई है। जबकि यह बीमारी हवा में फैले संक्रमण से होती है। नाक के रास्ते से यह संक्रमण व्यक्ति के अंदर प्रवेश करता है। जिन लोगों के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, वह इसके शिकार जल्दी हो जाते हैं। कुष्ठ रोग अन्य रोगों की तरह ही है, जो मल्टी ड्रग थेरेपी (एमडीटी) से ठीक हो जाता है। लेकिन जब समय पर उपचार न किया जाए तो यह बीमारी बढ़ जाती है। इसलिए स्वास्थ्य विभाग की टीम घर-घर जाकर कुष्ठ रोगियों को खोजने का काम कर रही है।
दो प्रकार का होता है कुष्ठ रोग
उन्होंने बताया कि कुष्ठ रोग दो प्रकार के होते हैं। पहला पॉस बेसलरी और दूसरा मल्टी बेसलरी है। पॉस बेसलरी से रोगी के शरीर में दो या तीन दाग होते हैं। जबकि मल्टी बेसलरी में पांच से अधिक दाग होते हैं। पॉस बेसलरी का लगातार छह माह तक उपचार करने से समाप्त हो जाता है, जबकि मल्टी बेसलरी का लगभग एक वर्ष लगातार उपचार जारी रहता है। गंदगी में पाए जाते है कुष्ठ के संक्रमण डॉ. महेश कुमार ने बताया कि गंदगी वाले क्षेत्रों में कुष्ठ रोग के संक्रमण का खतरा सबसे अधिक होता है, क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में माइक्रो बैक्टीरिया लेबरा नामक संक्रमण पाया जाता है। इस संक्रमण के फैलने के कारण ही यह बीमारी जन्म लेती है। अधिकतर यह बीमारी स्लम एरिया में अधिक देखने को मिलती है।