कानपुर- गणेश महोत्सव की शुरुआत स्वतंत्रता से पूर्व कानपुर में हुई। ऐसे समय में गणपति बप्पा के मंदिर की स्थापना करना अंग्रेजों के आगे बड़ी चुनाती थी। फिर भी बाल गंगाधर तिलक ने 1918 में धर्म के प्रति आस्था को मजबूत करने के लिए कानपुर में आकर भूमि पूजन किया था। जिसके बाद से शहर में गणेश महोत्सव का शुभारंभ हुआ। मंदिर के संरक्षक खेमचंद्र गुप्त ने बताया कि उनके बाबा लाला रामचरण और लाला ठाकुर प्रसाद ने वर्ष 1908 में बाल गंगाधर तिलक के सामने मंदिर निर्माण की इच्छा जाहिर की थी। जिसके बाद बाल गंगाधर तिलक ने 1918 में शहर आए और मंदिर का भूमि पूजन किया। अंग्रेजों के शासन में बाल गंगाधर ने अपनी व्यस्तता को लेकर अगली बार आकर भूमि पूजन करने के साथ गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना का वादा किया था। बाल गंगाधर तिलक को कानपुर आने में करीब तेरह साल लग गए और बाबा लाला रामचरण और लाला ठाकुर की जिद थी कि भूमि पूजन के साथ गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना तिलक से ही कराएंगे।
गणेशोत्सव के उत्साह की नींव वर्ष 1918 में बाल गंगाधर तिलक ने रखी थी। अंग्रेजों के विरोध के चलते घंटाघर स्थित प्राचीन मंदिर मकान के रूप में निर्मित किया गया। जहां पर गणपति महाराज के कई स्वरूपों के दर्शन भक्तों को होते हैं। मंदिर में विघ्नहर्ता के पुत्र शुभ और लाभ के साथ ऋद्धि-सिद्धि भी विराजमान हैं। प्रतिवर्ष गणेशोत्सव पर मंदिर में भगवान के दर्शन को देश-विदेश से भक्त आते हैं।