KANPUR: भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि यानि 29 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है। 14 अक्टूबर को सर्वे पितृ अमावस्या को पितृपक्ष का समापन होगा। कानपुर के सनातन धर्म मंदिर के पुजारी हरेंद्र ने बताया कि शुक्रवार से शुरू होने वाले पितृपक्ष में लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए उन्हें याद करते हुए तर्पण और श्राद्धकर्म करते हैं।
पुजारी के मुताबिक पूर्णिमा पर श्राद्ध उन लोगों का होता है, जिनकी मृत्यु वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुई हो। उसी तरह ज्ञात और अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध आश्विन अमावस्या को किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पितृपक्ष की शुरुआत के साथ ही शुभ कार्यों पर रोक लग जाएगी।
जानें क्यों करते हैं पूजा ?
पुजारी के अनुसार जो जन्म से लय (मोक्ष) तक साथ दे, वही जल है। वहीं तिलों को देवान्न कहा गया है। इससे ही पितरों को तृप्ति होती है। श्राद्ध केवल तीन पीढ़ियों तक का ही होता है। धर्मशास्त्र के मुताबिक सूर्य के कन्या राशि में आने पर परलोक से पितृ अपने परिजनों के पास आ जाते हैं। देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ी के पूर्वज गिने जाते हैं। पिता को वसु के समान, रुद्र दादा के समान और परदादा आदित्य के समान माने गए हैं। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि मनुष्य की स्मरण शक्ति केवल तीन पीढ़ियों तक ही सीमित रहती है।
जानें किसे कराया जाता है भोजन ?
उन्होंने बताया कि कौआ, कुत्ता और गाय इनको यम का प्रतीक माना गया है। गाय को वैतरणी पार करने वाला कहा गया है। कौआ भविष्यवक्ता और कुत्ते को अनिष्ट का संकेतक कहा गया है। इसलिए, श्राद्ध में इनको भी भोजन दिया जाता है। चूंकि हमको पता नहीं होता कि मृत्यु के बाद हमारे पितृ किस योनि में गए, इसलिए प्रतीकात्मक रूप से गाय, कुत्ते और कौआ को भोजन कराया जाता है।