सुलतानपुर- फिल्म जगत का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित मजरूह सुलतानपुरी को पंडित नेहरू की नीतियों के खिलाफ एक जोशीली कविता लिखने की वजह से दो साल जेल में रहना पड़ा था। लेकिन उनके द्वारा लिखे गीत आज भी लोगों के दिलों पर छू जाते हैं।
वो 20वीं सदी के उर्दू साहित्य जगत के बेहतरीन शायरों में गिने जाते थे। आज उनकी जयंती है। मजरूह सुलतानपुरी (Majrooh Sultanpuri) का जन्म एक अक्टूबर 1919 को उत्तर प्रदेश के जनपद सुलतानपुर हलियापुर मार्ग से सटे गंजेहड़ी गांव में हुआ था। उनके पिता मोहम्मद हसन पुलिस विभाग में उपनिरीक्षक के पद पर तैनात थे। उनकी कब्र आज भी यहां पर है।
मजरूह सुलतानपुरी का असली नाम असरार उल हसन खान था, लेकिन दुनिया उन्हें आज भी मजरूह सुलतानपुरी के नाम से ही जानती है। उन्होंने अपनी शिक्षा तकमील उल तिब कॉलेज से ली और यूनानी पद्धति की मेडिकल की परीक्षा पास की। इस परीक्षा के बाद एक हकीम के रूप में काम करने लगे। लेकिन बचपन से उनका मन शेरों-शायरी में लगा था। अक्सर वो मुशायरों में जाया करते थे। इसी कारण उन्हें काफी नाम और शोहरत मिलने लगी। अपना सारा ध्यान वो अब शेरों-शायरी और मुशायरों में लगाने लगे और मेडिकल की प्रैक्टिस बीच में छोड़ दी।
जानकार बताते हैं कि देश को आजादी मिलने से दो साल पहले वे एक मुशायरे में हिस्सा लेने बम्बई (अब मुम्बई) गए थे। उनके मुशायरे को सुनने के बाद मशहुर फिल्म निर्माता ए. आर. कारदार बड़े प्रभावित हुए और उन्हें अपनी नई फिल्म शाहजहां के लिए गीत लिखने का अवसर दिया। उनका चुनाव भी एक प्रतियोगिता के तहत किया था, जिसमें वे पास हुए थे। उनके द्वारा लिखे इस फिल्म के गीत को प्रसिद्ध गायक कुंदन लाल सहगल ने गाया।”जब दिल ही टूट गया” जो आज भी बहुत लोकप्रिय है। इनके संगीतकार नौशाद थे।
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इसके बाद उन्होंने सीआईडी, चलती का नाम गाड़ी, नौ-दो ग्यारह, तीसरी मंज़िल, पेइंग गेस्ट, काला पानी, तुम सा नहीं देखा, दिल देके देखो, दिल्ली का ठग आदि फिल्मों के लिए गीत लिखे जो आज भी सुनकर लोग उन्हें याद करते हैं। उनके गीतों को लेकर उन्हें सन 1994 में फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इससे पूर्व 1980 में उन्हें ग़ालिब एवार्ड और 1992 में इकबाल अवार्ड भी मिले थे। वे जीवन के अंत तक फिल्मों से जुड़े रहे। 24 मई 2000 को मुंबई में उनका देहांत हो गया।
Today is the birth anniversary of Majrooh Sultanpuri