नई दिल्ली- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश जोशी उपाख्य (भैयाजी जोशी) ने शुक्रवार को एक कार्यक्रम में ”दिल की गीता” ग्रंथ का विमोचन किया। इस अवसर पर उन्होंने गीता को समय की जरूरत बताते हुए कहा कि हम सभी के अंदर भगवद्गीता का बीज है। उन्होंने कहा कि सारे विश्व को शुद्धता के संस्कार, सकारात्मक सोच और धर्म के रास्ते पर चलने की आवश्यकता है।
भैयाजी जोशी शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में आयोजित “सामाजिक समरसता और सिंधी समाज” कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इसका आयोजन राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद, भारतीय सिंधु समाज, हिमालय परिवार और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के तत्वावधान में किया गया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय ऋषियों, मुनियों और भारतीय चिंतन ने समय-समय पर समरसता का संदेश रखा है। उपनिषद में भी भेदभाव नहीं, सर्वकल्याण की बाद कही गई है। उन्होंने कहा कि भगवान ने कहा है कि सज्जनों और धर्म की रक्षा के लिए वह बार-बार अवतार लेंगे। भैयाजी ने कहा कि समरसता समस्त जीवजगत और मानव समाज का उल्लेख गीता में दिया गया है। सभी के कल्याण की कामना की बात कही गई है।
भैयाजी जोशी ने कहा कि संकट तब आता है कि जब दुनिया दुर्जनों से भरी होगी तो ईश्वर ऊपर से नहीं आएंगे। गीता के संदेशों को संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए आवश्यक बताया। गीता में कर्मशीलता और भक्ति का संदेश दिया गया है। यह बातें सिर्फ हिंदुओं या एक समुदाय के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए हैं। कार्यक्रम को संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मुख्य संरक्षक इंद्रेश कुमार ने इजरायल, फिलिस्तीन, यूक्रेन और रूस का नाम लिए बिना कहा कि मुस्लिम, ईसाई और यहूदी कुल आबादी के 50 प्रतिशत हैं, लेकिन इतना बड़ा समाज आज की तारीख में गुस्से व नफरत में जीते हुए आपस में लड़ रहा है, ऐसे में विश्वशांति की कल्पना नहीं की जा सकती है।
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इंद्रेश कुमार ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए सामाजिक समरसता पर जोर दिया। उन्होंने कहा मालिक यानी ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु और गॉड सभी एक ही हैं, जिसको आसान शब्दों में ऊपर वाला कहा गया है। दीन, कुरान, पंथ, गीता, ग्रंथ एवं मतपंथों सभी में समरसता, प्यार, शांति और अपनेपन की बात कही गई है। इंद्रेश कुमार ने इस अवसर पर गीता के उपदेशों का उल्लेख करते हुए कहा कि रोटी कपड़ा मकान खून से नहीं श्रम से कमाया जाता है। गीता में श्री कृष्ण ने भी यही कहा था कि कर्म किए जा फल की चिंता न कर। अंग्रेजों को भी जब इस देश से भगाया गया था तो जो नारे लगाए गए थे वो थे- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।
उन्होंने कहा कि बापू ने भी रोटी कपड़ा और मकान की नहीं स्वाभिमान की बात की थी। क्योंकि यह स्वाभाविक था कि अंग्रेजों से जब आजादी मिलेगी तो बाकी चीजें स्वतः मिलेंगी। पुस्तक दिल की गीता को काव्य रूप में अनुवाद किया गया है। प्रोफेसर गीता जोशी ने इसका संपादन किया है। कार्यक्रम में एनसीएमईआई के मेंबर शाहिद अख्तर, दिल्ली विश्विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह, जाकिर हुसैन कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर नरेंद्र सिंह, भारतीय सिंधु समाज दिल्ली के अध्यक्ष राजन नागपाल समेत अनेक गणमान्य ने शिरकत की।