लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस इस समय दोराहे पर चल रही है। एक तरफ सपा के साथ गठबंधन को कायम रखे रहना चाहती है। वहीं दूसरी ओर बसपा के साथ गठबंधन की बात भी आगे बढ़ा रही है। कांग्रेस की मंशा है कि चाहे जो भी राह अपनाना पड़े, इंडिया गठबंधन को उत्तर प्रदेश से पचास प्रतिशत सीटें मिल जाती हैं तो केन्द्र में सरकार बनाने की राह आसान हो जाएगी।
इस बीच समाजवादी पार्टी को ज्यादा तवज्जो न दिये जाने के पीछे भी यही कारण है कि कांग्रेस सिर्फ उसे लोकसभा चुनाव में प्रयोग करने के फिराक में है। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी को वह बसपा का भय भी दिखा रही है कि यदि वे साथ नहीं आये तो बसपा उसके साथ कदम ताल मिलाकर चलेगी। यदि बसपा कांग्रेस के साथ हो जाती है तो निश्चय ही समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।
कांग्रेस के कुछ उच्च स्तरीय नेता इस फिराक में भी लगे हैं कि दो विपरीत ध्रुवों अर्थात समाजवादी पार्टी और बसपा को एक साथ कर कांग्रेस का गठबंधन हो तो लोकसभा चुनाव में चालीस के आस-पास सीटें जीत सकते हैं। हालांकि दोनों को एक साथ करना आसान नहीं है, क्योंकि सीटों के बंटवारे में दिक्कत होगी। काँग्रेस दोनों को साथ लाने के बहाने उत्तर प्रदेश में मुसलमनों और कुछ बचे हुए बसपा के पिछड़ों के वोट समेटने के चक्कर में फंसी है।
समाजवादी पार्टी के साथ चल रही तू-तू, मैं-मैं के बीच अब हाई कमान का फरमान सपा के साथ गठबंधन बनाये रखने का आ गया है। कांग्रेस के एक उच्च स्तरीय पदाधिकारी का कहना है कि हाईकमान ने सपा के साथ तल्खी न बढ़ाने का फरमान दिया है। समाजवादी पार्टी के साथ लोकसभा में गठबंधन रहेगा। यह निश्चित है, इस कारण उसके साथ सामन्जस्य बनाकर चला जाय। हालांकि पार्टी समाजवादी पार्टी के नेताओं को अपनी पार्टी की सदस्यता दिलाने से परहेज नहीं करेगी।
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अंशु अवस्थी ने एक मीडिया एजेंसी से कहा कि ‘हर दल अपना कुनबा बढ़ाने का प्रयास करता है। यदि हम भी कर रहे हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं दिखनी चाहिए। जो भी भाजपा का विरोधी है, वह हमारा मित्र है। हम सभी को एकजुट होकर भाजपा को हराने की रणनीति पर विचार करना है।’
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