Sitapur News: उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद में दीपावली त्योहार
से पहले कुंभकारों ने मिट्टी के बर्तनों को
आकार देना शुरू कर दिया है। अंधकार से प्रकाश की उमंग जगाते दीपावली पर्व से पहले रंगीन सतरंगी विदेशी
झालरों से हटके। इस बार जन आस्था से
जुड़े पारंपरिक स्वदेशी चलन में कुंभकारों
के हाथ से चाक कर बने मिट्टी के दीयों ने उन्हें सपनों की एक नई उड़ान दी है।
सीतापुर क्षेत्र
के बसंतपुर, बहादुरपुर, मुकीमपुर, कुम्हारनपुरवा,
हरदोईया,
रौनक
सरवा, गाजीपुर, जसवंतपुर गांवो
में कुंभकारों द्वारा मिट्टी चयन से उसको गूठने एवं दीप उत्सव के बर्तनों को
तरासने का काम शुरू कर दिया गया है। माना जा रहा है कि इस वर्ष पिछले वर्ष के मुताबिक डेढ़ से दोगुना अधिक छोटे
बड़े दिए बाजार में नजर आएंगे। साथ ही मटकी, गोबर के गणेश
लक्ष्मी, आधुनिक डिजाइनों के खिलौने एवं दीयों को खास डिजाइनों में ढालकर तैयार किया जाएगा।
डिजाइनर दीये बढ़ायेंगे घरों की रौनक
प्रधानमंत्री के लोकल
फार वोकल स्वदेशी मुहिम के चलते कुंभकारों के सपने साकार हो रहें है। बीते कई वर्षों में उद्योग से जुड़े
लोगों को सामाजिक एवं व्यवहारिक बदलाव में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। बदलते युग के साथ लोगों की पसंद के अनुसार डिजाइनर दीये खूब पसंद किए जाते हैं। जिसको देखते हुए
मिट्टी की झालर, मिट्टी के लालटेन, लटकते दीये सहित विभिन्न कलाकृतियों
बाजार में आने को तैयार हैं।
मलिहाबाद की गोपेश्वर गौशाला व कस्बे की कान्हा गौशाला
द्वारा गो उत्पादों से गोमयदीप एवं गोबर के खिलौने तैयार किए जा रहे हैं। इस तकनीकी दौर में कुंभकारों की चाक कैसे पीछे रह सकती है। कस्बे के
मनोहर सर्वेश, मुन्ना, रामप्रसाद द्वारा इलेक्ट्रॉनिक चाक की मदद से मिट्टी को बेहतरीन
शिल्पकारी से नए-नए आकार दे
रहे हैं। उनका कहना है इसे हाथ से नहीं घुमाना पड़ता मोटर से पुली घूमती रहती है।
क्या कहते हैं कुंभकार
कुंभकार समाज के तहसील अध्यक्ष रामलखन ने कहा कि सामाजिक बदलाव ने भले
ही धंधे में जान फूंक दी है। लेकिन
मिट्टी के बर्तनों को तरासना आसान नहीं है। जेठ-बैसाख में खास तालाब की मिट्टी के
प्रबंध सहित उपले, लकड़ी आदि प्रबंध किए जाते हैं। जिसके बाद बाजार के अनुरूप डिजाइन व भाव रखना
कभी कभी चुनौतीपूर्ण होता है।
बसंतपुर के सोनू, बृजलाल, मुल्लू हरदोईया के बीरबल, दर्शन आदि का कहना है कि पहले से इस बार मांग काफी बढ़ी है। इस बार हम लोग प्रति कुंभकार तकरीबन 40-45 हजार
दीये बनाने की तैयारी कर रहे हैं।
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