सनातन परंपरा और उत्तर भारत में संतान की मंगलकामना का पर्व, करवा चौथ के चार दिन पश्चात और दीपावली से ठीक एक सप्ताह पहले ‘अहोई अष्टमी’ पर्व के रूप में मनाया जाता है। प्रायः वही स्त्रियां यह त्योहार मनाती हैं जिनके संतान होती है। किन्तु अब यह व्रत निसंतान महिलाएं भी संतान की कामना के लिए करती हैं। ‘अहोई अष्टमी’ व्रत प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण अष्टमी को किया जाता है और इस वर्ष यह पर्व 05 नवंबर को मनाया जा रहा है। स्त्रियां दिनभर व्रत रखती हैं। सायंकाल से दीवार पर आठ कोष्ठक की पुतली लिखी जाती हैं। उसी के पास सेह और उसके बच्चों के चित्र भी बनाए जाते हैं। पृथ्वी पर चौक पूरकर कलश स्थापित किया जाता है। कलश पूजन के बाद दीवार पर लिखी अष्टमी का पूजन किया जाता है। फिर दूध-भात का भोग लगाकर कथा कही जाती है।
आधुनिक युग में अब बहुत सी महिलाएं दीवारों पर चित्र बनाने के लिए बाजार से अहोई अष्टमी के रेडीमेड चित्र खरीदकर उन्हें पूजास्थल पर स्थापित कर उनका पूजन करती हैं। कार्तिक कृष्ण अष्टमी को महिलाएं अपनी संतान की दीर्घ आयु तथा उनके जीवन में समस्त संकटों या विध्न-बाधाओं से उनकी रक्षा के लिए यह व्रत रखती हैं। कुछ स्थानों पर इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कंस के भेजे हुए धोबी का वध करने का मंचन किया जाता है। अहोई माता के रूप में अपनी-अपनी पारिवारिक परम्परानुसार लोग माता पार्वती की पूजा करते हैं।
अहोई अष्टमी व्रत के संबंध में कुछ कथाएं प्रचलित हैं। ऐसी एक कथानुसार प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैव योग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई, जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था? वह पश्चाताप करती हुई शोकाकुल अपने घर लौट आई। कुछ दिनों बाद उसके बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए।
महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जानबूझकर कभी कोई पाप नहीं किया। हां, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अनजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात मेरे सातों बेटों की मृत्यु हो गई। यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है, उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा। साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। बाद में उसे सात पुत्रों की प्राप्ति हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।
अहोई व्रत के संबंध में एक और कथा प्रचलित है। बहुत समय पहले झांसी के निकट एक नगर में चन्द्रभान नामक साहूकार रहता था। उसकी पत्नी चन्द्रिका बहुत सुंदर, सर्वगुण सम्पन्न, सती साध्वी, शीलवन्त, चरित्रवान तथा बुद्धिमान थी। उसके कई पुत्र-पुत्रियां थे परन्तु वे सभी बाल अवस्था में ही परलोक सिधार चुके थे। दोनों पति-पत्नी संतान न रह जाने से बहुत व्यथित रहते थे। वे दोनों प्रतिदिन मन ही मन सोचते कि हमारे मर जाने के बाद इस अपार धन-सम्पदा को कौन संभालेगा? एक बार उन दोनों ने निश्चय किया कि वनवास लेकर शेष जीवन प्रभु-भक्ति में व्यतीत करें। यही विचार कर दोनों अपना घर-वार त्यागकर वन की ओर चल दिए। रास्ते में जब थक जाते तो रुककर थोड़ा विश्राम कर लेते और फिर चल पड़ते। इस प्रकार धीरे-धीरे वे बद्रिका आश्रम के निकट शीतल कुण्ड जा पहुंचे। वहां पहुंचकर दोनों ने निराहार रहकर प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया।
निराहार व निर्जल रहते हुए जब उन्हें सात दिन हो गए तो आकाशवाणी हुई कि तुम दोनों प्राणी अपने प्राण मत त्यागो। यह सब दुख तुम्हें तुम्हारे पूर्व पापों से भोगना पड़ा है। यदि तुम्हारी पत्नी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली अहोई अष्टमी को अहोई माता का व्रत और पूजन करे तो अहोई देवी प्रसन्न होकर साक्षात दर्शन देंगी। तुम उनसे दीर्घायु पुत्रों का वरदान मांग लेना। व्रत के दिन तुम राधाकुण्ड में स्नान करना। चन्द्रिका ने आकाशवाणी के बताए अनुसार विधि-विधान से अहोई अष्टमी को अहोई माता का व्रत और पूजा-अर्चना की और तत्पश्चात राधाकुण्ड में स्नान किया।
जब वे स्नान इत्यादि के बाद घर पहुंचे तो उस दंपति को अहोई माता ने साक्षात दर्शन देकर वर मांगने को कहा। साहूकार दंपति ने हाथ जोड़कर कहा, ”हमारे बच्चे कम आयु में ही परलोक सिधार जाते हैं। आप हमें बच्चों की दीर्घायु का वरदान दें।’’ ”तथास्तु!’’ कहकर अहोई माता अंतर्ध्यान हो गईं। कुछ समय के बाद साहूकार दंपति को दीर्घायु पुत्रों की प्राप्ति हुई और वे सुखपूर्वक अपना गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे। देवी पार्वती को अनहोनी को होनी बनाने वाली देवी माना गया है, इसलिए अहोई अष्टमी पर माता पार्वती की पूजा की जाती है और संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन की कामना की जाती है।