21 फुट ऊंची विशाल प्रतिमा की महाआरती,
नाट्यमंचन विशेष आकर्षण का केंद्र
वाराणसी- भगवान चित्रगुप्त की जयंती पर बुधवार को अखिल भारतीय कायस्थ महासभा की ओर से 51 सुसज्जित छोटी नावों पर गंगा में भव्य शोभायात्रा निकाली गई। अस्सी घाट से डॉ राजेन्द्र प्रसाद घाट तक निकली शोभा यात्रा के साथ अस्सी घाट पर महापूजनोत्सव का आयोजन भी किया गया।
शोभा यात्रा का मुख्य आकर्षण भगवान चित्रगुप्त महाराज की 21 फीट की ऊंची भव्य प्रतिमा थी। भगवान चित्रगुप्त की प्रतिमा पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय संरक्षक महेश चन्द श्रीवास्तव ने पुष्प अर्पित किए और पूजा अर्चना की। जब शोभायात्रा राजेन्द्र प्रसाद घाट पर पहुंची तो महासभा के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति, भारत रत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद के मूर्ति पर माल्यार्पण किया।
यह भी पढ़ें- ODI Worldcup: फाइनल में पहुंचा भारत, सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड को 70 रन से हराया
कार्यक्रम में शामिल काशी सुमेरू पीठ के पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने महासभा की शोभायात्रा की सराहना की। इस अवसर पर भाजपा के नेता और पूर्व काशी क्षेत्र अध्यक्ष महेश चन्द श्रीवास्तव ने कहा कि भगवान चित्रगुप्त न्यायब्रह्म हैं, पुण्य और पाप के निष्पक्ष विचारक ही नहीं, फल निश्चित करने वाले शक्तिमान परमेश्वर हैं, वे सनातन धर्म के स्वरूप हैं। हमारे कर्मों का लेखा जोखा केवल एक पौराणिक इकाई नहीं है, बल्कि एक गहन आदर्श है जो मानवीय अनुभव के साथ प्रतिध्वनित होता है। आत्म-चिंतन की भावना से, हम सबको भगवान चित्रगुप्त जी की भक्ति और शिक्षाओं को अपना कर सत्य, निष्ठा, करुणापूर्ण जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए । इस अवसर पर पहली बार बुद्धि, विवेक और ज्ञान के प्रदाता व लेखनी के आराध्य देव पर आधारित एक भव्य नाट्य का मंचन भी भी हुआ।
उल्लेखनीय है कि आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि हमारे मन में जो भी विचार आते हैं वे सभी चित्रों के रुप में होते हैं। भगवान चित्रगुप्त इन सभी विचारों के चित्रों को गुप्त रूप से संचित करके रखते हैं अंत समय में ये सभी चित्र दृष्टिपटल पर रखे जाते हैं एवं इन्हीं के आधार पर जीवों के परलोक व पुनर्जन्म का निर्णय भगवान चित्रगुप्त जी के करते हैं। विज्ञान ने यह भी सिद्ध किया है कि मृत्यु के पश्चात जीव का मस्तिष्क कुछ समय कार्य करता है और इस दौरान जीवन में घटित प्रत्येक घटना के चित्र मस्तिष्क में चलते रहते हैं । इसे ही हजारों बर्षों पूर्व हमारे वेदों में लिखा गया हैं। भगवान चित्रगुप्त जी ही सृष्टि के प्रथम न्यायब्रह्म हैं। मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात, पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नरक अथवा पुनर्जन्म का निर्णय लेने का अधिकार भी भगवान चित्रगुप्त जी के पास है।
A grand procession of Lord Shri Chitragupta took place in varanasi on boats