देश की स्वतंत्रता को 76 वर्ष से अधिक हो गए पर इसाई मिशनरीज़ ने अपने काम करने के पुराने शातिर अंदाज़ को नहीं बदला है। पंजाब के तरनतारन जिले का गाँव खवासपुर वो गाँव है जहां अब 20 फीसदी लोग ईसाई बन चुके हैं। विगत क्रिसमस डे के अवसर यहाँ आयोजित प्रार्थना-सभा में चल रही संदिग्ध गतिविधियों के खबर लगने पर जब लोगों ने इसका प्रतिकार किया तो स्थिति ने विस्फोटक रूप ले लिया। एक निहंग की हत्या कर दी गयी। धर्मान्तरण के नित नए हथकंडों के विरुद्ध सिख-निहंगों का मैदान में उतरना सामान्य बात है।
अमृतसर में पिछले वर्ष मई में भी ईसाई पादरियों के खिलाफ निहंग एकजुट हो गए थे। उनका आरोप था कि पादरी सिक्खों की वेशभूषा और हिन्दू नाम धारण कर गुरुद्वारे के आसपास मंडराते रहते हैं और भोले-भाले लोगों को ईसाई धर्म में धीरे-धीरे आकर्षित करने का काम करते हैं। आज राज्य की ईसाई आबादी 10% आंकड़े के स्तर को पार कर चुकी है। जालंधर में एशिया की सबसे बड़ी चर्च बनकर खड़ी होने जा रही है। पंजाब के गाँव-गाँव में चंगाई उत्सव के नाम पर थोकबंद धर्मान्तरण चल रहा है।
चर्च के खिलाफ फूटा गुस्सा, यूँ ही नहीं है। दो वर्ष पूर्व 2021 में क्रिसमस के मौके पर ‘वायस आफ पीस मिनिस्ट्री’ के कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी स्वयं ये बोलने से नहीं चूके थे कि, ‘ईसाई मत में मेरी आस्था है, पैदा सिख हुआ हूँ, पर प्रभु ईसा मसीह से प्रेम करता हूँ।’ इस बयान पर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा का कहना था कि इससे अधिक दुखदायी और शर्मनाक बात पंजाब के लिए क्या हो सकती है कि उनका अपना मुख्यमंत्री धर्मांतरण को सही ठहरा रहा है।
इस प्रकार की घटनाओं को समझने के लिए जरूरी है कि उस दौर पर एक नज़र डालें जब कांग्रेस पार्टी, सोनिया गाँधी और उनके सबसे करीबी ऑस्कर फर्नांडीज व अहमद पटेल की मुट्ठी में आकर सिमट गयी। इस अवस्था को ईसाई मिशनरीज और नक्सलवाद में लिप्त लोगों ने अपने काम के विस्तार के अनुकूल पाया और ये देश में खूब फला-फूला। उड़ीसा में भी यह फला-फूला परन्तु वहां उन्हें चुनौती तब मिली जब एक हिन्दू संत स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती ने जनजातीय बंधुओं के बीच शिक्षा-सेवा- धर्मजागरण के कार्य शुरू किए। अन्तत: मिशनरी ने उन्हें रास्ते से सदा के लिए हटाने की ओर कदम बढ़ाया। उन पर लगातार 10 हमले हुए और ये तब जाकर रुके जब 4 अन्य शिष्यों के साथ जन्माष्टमी के दिन वर्ष 2008 में उनकी हत्या कर दी गयी। हत्या की साजिश ईसाई गतिविधियों के केंद्र कंधमाल जिले में रची गयी थी।
जांच में ईसाई प्रचारक और नक्सल-कार्यकर्ता सहित कुल 8 लोग शामिल पाए गए, जिन्हें कोर्ट ने सजा सुनाई। आज राहुल-प्रियंका गाँधी क्यों स्टालिन परिवार के साथ मजबूती से खड़े हैं, ये कारण भी जान लें। पिछले 2020 के चुनाव में चर्च ने डीएमके को खुला समर्थन किया था। चुनाव जीतने पर अब शासन तंत्र चर्च के बताए रास्ते पर है। स्टालिन स्वयं चर्च जाकर समर्थन पर धन्यवाद देकर बोलते पाए गए कि उनकी सरकार चर्च की ही सरकार है। एक ईसाई एक्टिविस्ट और चर्चित लेखिका ने यहाँ तक बोला कि तमिलनाडु में यदि धर्मान्तरण को गति देना है तो भाजपा को रोकना होगा। इसका डीएमके के हिन्दू नेताओं ने जमकर विरोध भी किया था।