जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले देश के कई वीर पराक्रमी जांबाजों की कहानी अपने पढ़ी होगी। ऐसी ही एक वीर गाथा कश्मीर घाटी के कुपवाड़ा से जुड़ी है। 05 जनवरी 1996 को कुपवाड़ा के कंडी क्षेत्र में ऑपरेशन गणपति के तहत आतंकियों के खिलाफ तलाशी अभियान जारी था। इसका नेतृत्व 21 राष्ट्रीय राइफल्स के कैप्टन हितेश भल्ला कर रहे थे।
तलाशी के दौरान आतंकियों के एक ठिकाने तक भारतीय सेना पहुंच गई। यहाँ मौजूद पाकिस्तानी आतंकियों को सुरक्षा कर्मियों के आने की सुगबुगाहट हुई। उन्होंने ठिकाने से टीम पर फायरिंग करना शुरू कर दिया। अदम्य साहस का परिचय दे रहे 2 नॉन-कमीशंड अधिकारी इस गोलीबारी में घायल हो गए। इस दौरान कैप्टन हितेश भल्ला ने तुरंत ठिकाने की घेराबंदी करने का आदेश दिया। यही नहीं जवाबी कार्यवाही में जवानों ने कैप्टन भल्ला के नेतृत्व में गोलियां बरसनी शुरू कर दी। आतंकवादियों की तरफ से चल रही गोलीबारी और इधर से जवानों की गोलीबारी के बीच कैप्टन हितेश भल्ला रेंगते हुए ठिकाने के अंदर दाखिल हुए और आतंकी गोलीबारी में हताहत हुए दोनों नॉन-कमीशंड ऑफिसरों को वापस ले आये।
यही नहीं कैप्टन हितेश भल्ला ने बिना जान की परवाह किए हुए दोबारा आतंकी ठिकाने में रेंगते हुए प्रवेश किया और अंदर एक ग्रेनेड फेंका। इस हमले से एक आतंकवादी घातक रूप से घायल हो गया और दूसरे को बाहर आने के लिए मजबूर होना पड़ा। कैप्टन हितेश भल्ला ने आमने-सामने की लड़ाई में दूसरे आतंकवादी को भी पास से गोली मारकर मार गिराया।
अपनी जान की परवाह किए बगैर असाधारण वीरता की मिसाल पेश करने के साथ ही कैप्टन हितेश भल्ला ने देश के सुरक्षा के लिए अपने दृढ़ संकल्प और कर्तव्य के प्रति समर्पण का प्रदर्शन किया। उनके इस साहस और वीरता के लिए 2 नवम्बर 2022 को “शौर्य चक्र” प्रदान किया गया।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ था मेजर हितेष भल्ला का जन्म
मेजर हितेष भल्ला का जन्म 30 अक्टूबर 1969 को यूपी के गोरखपुर में हुआ था। उनके पिता जे एस भल्ला सेना में ब्रिगेडियर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। मेजर हितेष भल्ला ने 09 जून 1990 को भारतीय सेना में कमीशन लिया और 11 मराठा लाइट इंफेन्ट्री में पदस्थ हुए। इसके बाद उनकी अस्थायी तैनाती 21 राष्ट्रीय राइफल्स में हुई थी।
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