Sultanpur News: जनपद से सांसद रहे दिवगंत पूर्व SSP डीबी राय इस दुनिया में नही
हैं, परन्तु 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले प्राण प्रतिष्ठा
महोत्सव की गूंज उनकी आत्मा को शांति अवश्य प्रदान करेगी। डीबी राय का परिवार
इस पावन अवसर को लेकर अत्यंत
उत्साहित है। उनके पुत्र पुनीत राय को
प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निमंत्रण पहुंचा, जिसके बाद वह अपने आप को
गौरवान्वित महसूस करने लगे।
पुनीत राय ने बताया कि श्रीराम मंदिर के बनने पर हम अपने आपको
बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। पिताजी का योगदान इतिहास के पन्नों में लिखा
है।
उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के इस ऐतिहासिक कार्य
को पूरा देश कभी
भूल नहीं सकता। आज पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है।
उनके कुशल नेतृत्व एवं निर्णय लेने की
क्षमता के चलते आज भारत ने
पूरे विश्व के आगे अपनी एक अलग पहचान बना ली है। पुनीत राय को प्राण-प्रतिष्ठा का निमंत्रण
मिलने की राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चाएं है। साथ ही यह
भी चर्चा है कि जनपद से अभी तक और किसी को आमंत्रण नहीं मिला
है।
7 दिसंबर 1992
को हुए थे सस्पेंड-
उत्तर प्रदेश में तत्कालीन मुलायम सिंह की सरकार में डीबी
राय अयोध्या के SSP थे। निहत्थे कारसेवकों पर तत्कालीन
सरकार ने गोली चलाने के निर्देश दिए। लेकिन डीबी राय ने ऐसा करने से खुद को रोका था। जिसके बाद उन्हें
अपनी कुर्सी तक गंवानी पड़ी। डीबी राय ने 6
दिसंबर को अयोध्या का सच जनता के सामने लाने के लिए एक पुस्तक भी लिखी। जिसमें सचित्र वर्णन
किया गया है। 2008 में
प्रकाशित हुई यह पुस्तक काफी चर्चा में रही। डीबी राय के पुत्र
पुनीत राय ने बताया कि भगवान श्रीराम के प्रति जो आस्था पिताजी की थी उससे कम
आस्था हम लोगों की नहीं है।
सन 1992 की अयोध्या कारसेवा में पिताजी ने निहत्थे कारसेवकों पर गोली
नहीं चलवाई थी। जिसके कारण
उन्हें 7 दिसंबर को
सस्पेंड कर दिया गया था। सस्पेंशन के बाद कोर्ट में सीबीआई चार्जशीट दाखिल नहीं कर
पाई। ऐसे में 6 महीने बाद
वो बहाल हो गए। उसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को इस्तीफा सौंपा। लेकिन उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया गया।
कोर्ट की शरण के बाद 1996 में मंजूर हुआ था
इस्तीफा-
अंत में उन्हें कोर्ट की शरण लेनी पड़ी
तब जाकर 1996 में उनका इस्तीफा
मंजूर हुआ। लेकिन वेतन एवं पेंशन को रोक दिया गया। 1971 बैच के अधिकारी डीबी राय 25 बरस तक वर्दी पहनकर लोगों की सुरक्षा
में लगे रहे। बाद में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और फिर समाजसेवा में अपना जीवन समर्पित
कर दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोग से उन्होंने बीजेपी का दामन थामा। बीजेपी के टिकट पर वह दो बार सुलतानपुर
से सांसद चुने गए।
पहली बार 1996 में एक लाख 28 हजार वोट से उन्होंने जीत दर्ज की। वही दूसरी बार 1998 में 68 हजार वोट से रीता जोशी बहुगुणा जोशी को चुनाव में पराजित किया। वह सुल्तानपुर जनपद के
इकलौते ऐसे सांसद थे जो लगातार दो बार चुनें गए । वर्ष 2009 में 64 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया।
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