मेरठ: पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की घोषणा होने के बाद से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खुशी की लहर दौड़ गई है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में भाग लिया तो आजाद भारत में आपातकाल का भी विरोध किया। उन्हें किसानों की लड़ाई लड़ने के लिए याद किया जाता है।
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने जीवनभर जनता के हक की लड़ाई लड़ी। उनका जन्म हापुड़ जनपद (उस समय मेरठ) जनपद के नूरपुर मढैय्या गांव में 23 दिसम्बर 1902 में हुआ था। इनके पिता का नाम मीर सिंह था। चौधरी चरण सिंह विज्ञान से स्नातक, कला स्नातकोत्तर और विधि स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। वह भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने और उनका कार्यकाल 28 जुलाई 1979 से लेकर 14 जनवरी 1980 तक रहा।
चौधरी चरण सिंह ने कई पुस्तकें लिखीं
चौधरी चरण सिंह ने भूमि सुधार और कुलक वर्ग, भारत की अर्थनीति, गांधीवादी रूपरेखा की रचना, शिष्टाचार, इकोनॉमिक नाइटमेयर ऑफ इंडिया इट्स कोज एंड क्योर (भारत की भयावह आर्थिक स्थिति, कारण और निदान) ‘अबॉलिशन ऑफ़ जमींदारी’, ‘लीजेंड प्रोपराइटरशिप’ और ‘इंडियास पॉवर्टी एंड इट्स सोल्यूशंस’ जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं।
आजादी की लड़ाई में लिया भाग
चौधरी चरण सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया। अपनी राजनीति की शुरूआत कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में की। कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे, तब चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में चरण सिंह ने हिंडन नदी किनारे नमक बनाना शुरू किया, तो अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जेल से बाहर आकर वह जोर-शोर से स्वतंत्रता आंदोलन में लग गए।
1937 में पहली बार विधानसभा पहुंचे
1937 विधानसभा चुनाव में चौधरी चरण सिंह बागपत से विधायक चुने गए। विधानसभा में किसानों की फसल से संबंधित एक बिल पेश किया। 1939 में ऋण निर्मोचन विधेयक पास कराकर चौधरी साहब ने लाखों गरीब किसानों को कर्ज से मुक्ति दिलाई। 1940 में छोटे स्तर पर व्यक्तिगत सत्याग्रह में चरण सिंह ने भाग लिया। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया और इस दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। चौधरी चरण सिंह किसानों को जमीन का मालिकाना हक दिलाना चाहते थे। वह भारत में सोवियत संघ की तर्ज पर आर्थिक नीतियां लागू कराना नहीं चाहते थे।
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भारतीय क्रांति दल का किया गठन
चौधरी चरण सिंह 1952, 1962 और 1967 का विधानसभा चुनाव जीता। वे गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव रहे। इसके बाद राजस्व, कानून, सूचना, स्वास्थ्य मंत्रालयों को भी संभाला। 1967 में चरण सिंह ने कांग्रेस छोड़कर भारतीय क्रांति दल का गठन किया। उत्तर प्रदेश में पहली बार कांग्रेस हारी और चौधरी चरण सिंह 1967 व 1970 में मुख्यमंत्री बने। उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जमींदारी उन्मूलन कानून लागू कराया। इसका जमींदारों ने बहुत विरोध किया, लेकिन उनका विरोध काम नहीं आया। उन्होंने खाद से सेल्स टैक्स हटाया।