Atrial Fibrillation: बदल रहे जीवनशैली के चलते लोगों में कई प्रकार की समस्याओं का आना-जाना लगा रहता है। इन दिनों दिल से जुड़ी समस्याएं काफी चिंता बनी हुई हैं। क्योंकि, दिल से जुड़ी समस्याएं आयेदिन देखने को मिल रही हैं। एट्रियल फिब्रिलेशन इन समस्याओं में से एक है। अनियमित दिल की धड़कन की वजह बनती है। साथ ही ये धीरे-धीरे स्ट्रोक का कारण भी बनने लगता है।
दिल हमारे शरीर का सबसे अहम अंग होता है। जो बंद मुट्ठी के आकार का होता है, ये हमारे पूरे शरीर में खून पहुंचाने का काम करता है। हालांकि, इन दिनों कुछ ज्यादा ही लोग दिल से जुड़ी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। एट्रियल फिब्रिलेशन भी इन्हीं समस्याओं में से एक है। हार्ट खुद ही अपने इलेक्ट्रिक सिग्नल जेनरेट करने लगता है, जिससे दिल धड़कने का काम करता है। इन सिग्नल्स में किसी भी तरह की अनियमितता ही दिल की धड़कन को प्रभावित करने में सक्षम हो जाती है। इसे ही एट्रियल फिब्रिलेशन या एएफ कहा जाता है।
ऐसे में कुछ लोगों में घबराहट, चक्कर आना और थकान जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं। हालांकि, एएफ से पीड़ित लगभग 50% लोगों में कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देता हैं। जिसे साइलेंट एएफ के नाम से जाना जाता है। जिसके परिणामस्वरूप सीधे स्ट्रोक की समस्याएं हो सकती है।
एएफ के रिस्क फैक्टर्स
एक रिपोर्टस में दावा किया गया कि, समय के साथ, अनियमित पंपिंग होने की वजह से खून दिल के ऊपरी चैंबर में जमा हो जाता है, जो खून के थक्कों की वजह बनने लगता है। खून के ये थक्के अक्सर मस्तिष्क की ओर बढ़ते हैं। जिससे मस्तिष्क तक पहुंचने वाले खून में रुकावट आ जाती है। जो स्ट्रोक का कारण बनती है। के अध्ययन में पता चला कि 10% से 20% मरीजों में स्ट्रोक का कारण एट्रियल फिब्रिलेशन से होता है। स्ट्रोक शारीरिक रूप से अक्षम कर सकता है। खासकर उम्रदराज जैसे लोगों को अपना शिकार बना लेता है। हालांकि, एट्रियल फिब्रिलेशन का शिकार लोगों में इस स्ट्रोक को रोकना संभव है।
कार्डियोलॉजिस्ट्स ‘CHADS2-VASc’ स्कोर के माध्यम से एट्रियल फिब्रिलेशन वाले लोगों में स्ट्रोक के खतरे की गणना की जाती हैं। यह स्कोर व्यक्ति की उम्र, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हार्ट फेलियर, अन्य हार्ट डिजीज और स्ट्रोक के इतिहास जैसी स्थितियों पर निर्भर करता है। एएफ वाले लोग जिनका स्कोर 1 या इससे कहीं ज्यादा होता है, उन्हें एंटी-कोआगुलंट्स नामक दवाएं दी जाती हैं। ये दवाएं खून का थक्का जमने से उन्हें रोकती हैं। साथ ही स्ट्रोक को भी रोकने में लाभदायक होती हैं।
स्क्रीनिंग, निदान और उपचार
एक रिपोर्ट के अनुसार, साइलेंट एएफ में, स्ट्रोक की रोकथाम एक चुनौती बन जाती है। जिसे लेकर हेल्थ एक्सपर्ट ये सलाह देते हैं कि 60 वर्ष से ज्यादा उम्र वाले लोग, जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, थायरॉइड की समस्या या फिर कोई और समस्या है, उन्हें हृदय रोग के लिए नियमित जांच करानी चाहिए। एएफ की स्क्रीनिंग पल्स की पेल्पिटेशन और एक ईसीजी के जरिए की जाती है।
क्यों जरूरी है एट्रियल फिब्रिलेशन का निदान
आपको बता दें कि, एएफ का शीघ्र निदान बुजुर्गों को स्ट्रोक जैसी वाली जटिलताओं से बचा सकता है। इसका इलाज संभव है, क्योंकि अब दिल की सामान्य गति को वापस लाने के लिए प्रभावी दवा मौजूद है।