इतिहास में 27 फरवरी का दिन एक बेहद दुखद घटना के रूप में दर्ज है। दरअसल इसी दिन गुजरात के गोधरा में साल 2002 में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के कोच S-6 को आग के हवाले कर दिया गया था, जिससे ट्रेन में बैठे 59 कारसेवकों
की आग की चपेट में आने से मृत्यु हो गई थी। ये सभी कारसेवक अयोध्या में आयोजित विश्व हिन्दू परिषद के पूर्णाहूति महायज्ञ में भाग लेकर वापस अपने घर लौट रहे थे।
गोधरा स्टेशन पर चेन पुलिंग कर ट्रेन में लगाई गई आग
27
फरवरी
की सुबह करीब 7:43 बजे के आसपास जब ये ट्रेन गोधरा स्टेशन से रवाना होने लगी, तभी ट्रेन में चेन पुलिंग हो गई और ट्रेन को रोक दिया गया। इसके बाद ट्रेन में 1000-2000 की संख्या में आई भीड़ ने ट्रेन पर हमला कर दिया।
भीड़ ने पहले पत्थरबाजी की, फिर कोच में आग लगा दी, जिससे ट्रेन में बैठे लोगों में से 27
महिलाओं,
22 पुरूषों और 10 बच्चों
की जलकर मुत्यु हो गई।
रिटायर्ड जज जी. टी. नानावटी की अध्यक्षता में समिति का पुनर्गठन
तत्कालीन गुजरात सरकार ने इस
घटना की जांच के लिए हाईकोर्ट के न्यायाधीश के. जी. शाह की अध्यक्षता में एक सदस्यीय समिति का गठन किया। लेकिन विपक्ष और मानवाधिकार संगठनों के विरोध को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश (सेवानिवृत) जी. टी. नानावटी की अध्यक्षता में समिति
का पुनर्गठन किया गया। नानावटी समिति में न्यायाधीश के. जी. शाह को इसका सदस्य बनाया गया।
2008 में न्यायाधीश
के. जी. शाह की मृत्यु हो जाने
पर गुजरात हाईकोर्ट ने उनकी जगह रिटायर्ड जज अक्षय कुमार मेहता को समिति का सदस्य
नियुक्त किया। यही वजह है कि बाद में इस समिति को नानावटी मेहता समिति कहा गया।
2014 में समिति ने सौंपी रिपोर्ट
नानावटी मेहता समिति ने 6
साल
तक घटना की जांच करने के बाद 2014
में
अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट के अनुसार गोधरा दुर्घटना को एक षडयंत्र के तहत अंजाम
दिया गया था। इसका मुख्य आरोपी गोधरा का मौलवी हुसैन हाजी इब्राहिम उमर
एवं ननूमियां थे। इन्होंने ‘ सिग्नल
फालिया’ एरिया के लोगों को भड़काकर षडयंत्र को अंजाम दिया।
रिपोर्ट में ये बातें आईं थीं सामने
रिपोर्ट के अनुसार,,ट्रेन को जलाने के लिए रज्जाक कुरकुर के
गेस्ट हाउस पर 140 लीटर ज्वलनशील पदार्थ भी इकट्ठा किया गया। रिपोर्ट में ज्वलनशील पदार्थ छिड़कने की सत्यता को
प्रमाणित करने के लिए फॉरेन्सिक लेबोरेट्री के प्रमाणों का भी उल्लेख किया गया।
गुजरात फोरेन्सिक साइंस लेबोरेट्री के अनुसार,, आग लगने का कारण ज्वलनशील पदार्थ का
कोच के अन्दर डाला जाना था और आग लगना केवल दुर्घटना मात्र नहीं थी।
मई 2004
में जब यूपीए सरकार आयी, तो लालू प्रसाद यादव रेलमंत्री बने। उन्होंने घटना की पुनः
जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज उमेश चन्द्र बनर्जी की
अध्यक्षता में एक सदस्यीय समिति नियुक्त की। उमेश चन्द्र बनर्जी समिति ने जनवरी 2005
में अपनी अन्तरिम रिपोर्ट पेश की। इसमें गोधरा कांड को केवल एक
दुर्घटना माना गया।
इसके बाद बनर्जी कमीशन की
रिपोर्ट को गोधरा दुर्घटना में घायल नीलकांत भाटिया ने गुजरात हाईकोर्ट में
चुनौती दी। अक्टूबर 2006 में
उच्च न्यायालय ने बनर्जी समिति की रिपोर्ट को खारिज कर दिया और उनकी जांच को
अवैधानिक और शून्य घोषित कर दिया। उच्च न्यायालय के अनुसार बनर्जी समिति का यह
निष्कर्ष कि ट्रेन में आग दुर्घटनावश लग गयी थी और कोई षडयंत्र नहीं था,
प्राप्त
आधारभूत प्रमाणों के विपरीत है।
एसआईटी ने 68
लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। इसमें उल्लेख किया गया कि भीड़ ने पुलिस
पर भी हमला किया और फायर ब्रिगेड को भी रोकने की कोशिश की। विशेष ट्रायल कोर्ट ने 2011
में 31 लोगों को दोषी पाया।
11 लोगों को मौत की सजा दी। ये वही लोग थे,, जिन्होंने गोधरा में ट्रेन जलाने का षडयंत्र रचा और कोच में ज्वलनशील पदार्थ छिड़का। कोर्ट ने अन्य 20 को
आजीवन कारावास की सजा दी।
उधर,, आरोपियों ने गुजरात
हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने 11
मृत्यु दण्ड पाए अभियुक्तों की सजा मृत्युदंड से बदलकर आजीवन कारावास कर दी। इस
प्रकार हाईकोर्ट ने सभी 31 दोषियों
को आजीवन कारावास की सजा दी। जिन आरोपियों को ट्रायल कोर्ट ने छोड़ दिया था,, उनको
उच्च न्यायालय ने भी बरी कर दिया।
31 दोषियों में से
उम्रकैद की सजा काट रहे 27 दोषियों ने जमानत याचिका दाखिल की थी,
जिनमें
से 8 की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2023 में मंजूर कर लिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दोषी 17-18 साल से जेल में हैं और उनकी अपील पर
सुनवाई में समय लगेगा। हालांकि, कोर्ट
ने मामले में मौत की सजा काट रहे 4 दोषियों को किसी तरह से राहत देने से इनकार दे
दिया था।