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आपातकाल में सबसे अधिक मार प्रेस की स्वतंत्रता पर पड़ी, खबर छापने से पहले सरकार की लेनी होती थी अनुमति!

live up bureau by live up bureau
Jun 28, 2024, 01:45 pm IST
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नई दिल्ली: 25 जून 1975 को देश में लागू हुई इमरजेंसी को आसानी से नहीं भुलाया जा सकता। आज भले ही कांग्रेस पार्टी के नेता यह आसानी से बोल देते हैं कि आपातकाल की बात 50 साल पुरानी हो गई। लेकिन, इमरजेंसी के 21 महीनों में (25 जून 1975- 21 मार्च 1977) ऐसे कड़े प्रतिबंधों को लोगों और खासकर प्रेस पर थोपा गया जो आजाद भारत के इतिहास में कभी नहीं देखने को मिला।

आपातकाल में लोगों के मौलिक अधिकारों को तो सीमित किया ही गया, लेकिन उससे भी ज्यादा मार पड़ी प्रेस की स्वतंत्रता पर। आपातकाल के दौर में प्रेस में छपने वाली खबरों को सेंसर किया जाने लगा। जैसा कि आज फिल्मों को सेंसर करने के बाद ही प्रमाण पत्र जारी किया जाता है, इमरजेंसी के दौर में ऐसे ही पहले सरकारी अधिकारी एक-एक खबरों को देखते थे, फिर अपने हिसाब से छपने की अनुमति देते। अगर कोई खबर सरकारी तंत्र के खिलाफ होती तो उसे तत्काल हटवा दिया जाता।

3,801 समाचार-पत्रों की अनुमति रद्द

आपातकाल के 21 महीनों में 3,801 समाचार-पत्रों की अनुमति रद्द कर दी गई। कोई भी खबर अखबार में छपने से पहले सरकार की अनुमति लेना आवश्यक कर दिया गया। 1971 में बने मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (मीसा) के तहत तमाम विपक्षी नेताओं को तो गिरफ्तार ही किया गया, साथ ही देश के 327 प्रमुख पत्रकारों को भी जेल में डाल दिया गया।

प्रेस कार्यालयों के काटे गए बिजली कनेक्शन

प्रेस के प्रति कठोर सेंसरशिप नीति के तहत सरकार ने 290 समाचार पत्रों को विज्ञापन देना बंद कर दिया। जिसके उनके संपादन में आर्थिक समस्याएं आने लगीं। प्रेस कार्यालयों के बिजली व टेलीफोन के कनेक्शन काट दिए गए। जिसका परिणाम यह हुआ कि अधिकांश पेपर समय से छप ही नहीं पाए। सरकार ने टाइम पत्रिका (अमेरिका) और द गार्जियन (ब्रिटिश ) समाचार पत्र के संपादकों को भारत छोड़ने के लिए बोल दिया। रूसी समाचार एजेंसी रायटर सहित अन्य देशी व विदेशी न्यूज एजेंसियों के कार्यालयों के टेलीफोन कनेंक्शन काट दिए गए। जिससे वह आगे सूचना की नहीं प्रेषित कर पाए।

यह भी पढ़ें: Emergency का 50वां साल, आखिर Indira Gandhi ने क्यों लगाया था आपातकाल?

पत्रकारों और कैमरामैनों की मान्यता खत्म की गई

एक ओर देश के बड़े-बड़े पत्रकारों को गिरफ्तार किया जा रहा था, तो दूसरी ओर 50 से अधिक पत्रकारों और कैमरामैनों की मान्यता खत्म कर दी गई। भारतीय प्रेस परिषद (PCI) की कार्यकारिणी को भंग कर दिया गया। इतिहासकारों की माने तो, 75 के दौर में मीडिया के अधिकांश मुख्यालय बहादुर शाह जफर रोड पर हुआ करते थे। सरकार ने उस इलाके की लाइट को काट दिया। साथ ही समाचार पत्रों के कार्यालयों में सरकारी अधिकारी और कर्माचरियों की तैनाती कर दी गई, ताकि हर खबर पर उनकी निगरानी रहे। संपादकों को खबर छापने से पहले इन सरकारी अधिकारियों की अनुमति लेनी पड़ती।

Tags: emergencyFreedom of the pressIndira GandhiPress ban
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