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हिन्दू नववर्ष पर जन्मे थे डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार, महान देशभक्त और संगठन-शिल्पी के बारे में पढ़ें ये स्पेशल आर्टिकल

live up bureau by live up bureau
Apr 9, 2024, 03:49 pm IST
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आज मंगलवार से हिंदू नववर्ष की शुरुआत हो गई है। ब्रह्म पुराण के अनुसार, चैत्र प्रतिपदा तिथि यानि सनातन नववर्ष के पहले दिन सृष्टि का आरंभ हुआ था और इसी दिन से काल गणना का क्रम भी शुरू हुआ था। प्राचीन भारतीय इतिहास की बात करें तो 1889 में इसी शुक्ल प्रतिपदा के दिन महान देशभक्त और संगठन-शिल्पी डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार का जन्म हुआ था।

नागपुर में एक साधारण परिवार में जन्मे बालक केशव राव को देखकर किसी ने ये नहीं सोचा होगा, कि वे आगे चलकर एक नई क्रांति का संचार करेंगे। डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर, यवतमाल और पुणे से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 1910 में कोलकाता के नेशनल मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। वहां से 1914 में चिकित्सा में डिग्री लेने के बाद वे नागपुर वापस लौट आए। इस दौरान उनका संपर्क बंगाल के प्रमुख क्रांतिकारियों से हुआ। डॉ. हेडगेवार ने कभी भी पेशेवर डॉक्टर के रूप में कार्य नहीं किया। वे देश की स्वतंत्रता और सेवा हित में चलाए जाने वाले कार्यक्रमों से जुड़ते गए।

1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शुरुआत की

डॉ. हेडगेवार ने इन वर्षों में भारत के इतिहास, वर्तमान और भविष्य को जोड़कर राष्ट्रीयता के मूल प्रश्न पर विचार किया,, जिसके निष्कर्ष में भाऊजी काबरे, अण्णा सोहोनी, विश्वनाथराव केलकर, बाबूराव भेदी और बालाजी हुद्दार के साथ मिलकर उन्होंने 25 सितम्बर, 1925 (विजयादशमी) को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शुरुआत की। उस समय ये सिर्फ संघ के नाम से जाना जाता था। उसमें राष्ट्रीय और स्वयंसेवक शब्दों को छह महीने बाद यानि 17 अप्रैल, 1926 को सम्मलित किया गया।

नागपुर के बाद 1929 में वर्धा और फिर पुणे में 1932 में संघ कार्य की शुरुआत हुई। जल्दी ही महाराष्ट्र के अन्य शहरों में भी विस्तार होने लगा, जहां 1929 में शाखाओं की संख्या 37 थी, वहीं 1933 आते-आते इनकी संख्या 125 तक पहुंच गई। डॉ. हेडगेवार एक पत्र के माध्यम से लिखते है, “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य किसी एक नगर या प्रान्त के लिए आरम्भ नहीं किया है। अपने अखिल हिन्दुस्थान देश को यथाशीघ्र सुसंगठित करके हिन्दू समाज को स्वसंरक्षण एवं बलसंपन्न बनाने के उद्देश्य में इसे प्रारंभ किया गया है।”

संघ का ये विचार और विस्तार दोनों ब्रिटिश सरकार के लिए अनुकूल नहीं था। दिल्ली में ब्रिटिश अधिकारी, एम. जी. हालौट द्वारा मध्य प्रान्त सरकार पर दबाव बनाया गया कि वह संघ को रोकने के प्रयास करे। आखिरकार दिसंबर 1933 में मध्य भारत के शिक्षकों और निकायों के कर्मचारियों को संघ के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से रोक लगा दी गई। मार्च 1934 में प्रतिबन्ध के विरोध में एक कटौती प्रस्ताव विधानसभा के समक्ष रखा गया। इसके पक्ष में टी. एच. केदार, आर. डब्लू. फुले, रमाबाई ताम्बे, बी. जी. खापर्डे, आर.ए. कानितकर, सी. बी. पारेख, यू.एन. ठाकुर, मनमोहन सिंह, एम. डी. मंगलमूर्ति, एस. जी सपकल और डब्लू. वाई. देशमुख सहित अन्य सदस्यों ने अपनी बात रखी। संघ की अवधारणा का इस प्रकार से समर्थन अभूतपूर्व था। बहस के अंत में ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाया गया प्रतिबन्ध वापस ले लिए गया।

धीरे-धीरे हुआ संघ कार्य का विस्तार

विधानसभा में मिली सफलता ने संघ कार्य में स्फूर्ति का काम किया। अवकाश के दिनों में संघ प्रशिक्षण शिविरों में हजारों की संख्या में स्वयंसेवक आने लगे। श्री गुरूजी (पंजाब), भाउराव देवरस (लखनऊ), राजाभाऊ पातुरकर (लाहौर), वसंतराव ओक (दिल्ली), एकनाथ रानाडे (महाकौशल), माधवराव मूले (कोंकण), जनार्दन चिंचालकर एवं दादाराव परमार्थ (दक्षिण भारत), नरहरि पारिख एवं बापूराव दिवाकर (बिहार) और बालासाहब देवरस (कोलकाता) ने संघ कार्य का विस्तार करना शुरू किया। परिणामस्वरूप, लगभग एक दशक बाद देशभर में 600 से अधिक शाखाएं और लगभग 70,000 स्वयंसेवक नियमित अभ्यास करने लगे थे।

1939 तक दिल्ली, पंजाब, बंगाल, बिहार, कर्नाटक, मध्य प्रान्त, बम्बई (वर्तमान महाराष्ट्र और गुजरात) में संघ शाखाएं लगनी शुरू हो गई। डॉ. हेडगेवार की भाषा और आचरण में सामान्यतः सरलता एवं आत्मीयता थी। चूंकि संघ का कार्य राष्ट्र का कार्य है, इसलिए उन्होंने सभी को परिवार के सदस्य के रूप में माना। परस्पर घनिष्ठता और स्नेह-संबंधों के आधार पर उन्होंने नियमित स्वयंसेवकों को तैयार किया। उनका विचार था कि किन्ही अपरिहार्य कारणों से संघ का कार्य अवरुद्ध न होने पाए। उनका उद्देश्य केवल संख्या बढ़ाने पर नहीं बल्कि वास्तव में हिन्दुओं को संगठित करना था। इसके लिए उन्होंने समझाया कि संघ का कार्य जीवनपर्यंत करना होगा। समाज में स्वाभाविक सामर्थ्य जगाना ही इसका अंतिम लक्ष्य होगा।

संघ के पहले सरसंघचालक रहे

डॉ. हेडगेवार 15 वर्षों तक संघ के पहले सरसंघचालक रहे। वे दावे के साथ आश्वासन देते थे कि “अच्छी संघ शाखाओं का निर्माण कीजिये, उस जाल को अधिकतम घना बुनते जाइए, समूचे समाज को संघ शाखाओं के प्रभाव में लाइए, तब राष्ट्रीय आज़ादी से लेकर हमारी सर्वांगीण उन्नति करने की सभी समस्याएं निश्चित रूप से हल हो जाएगी।” इन वर्षों में जिससे भी उनका संपर्क हुआ उन्होंने उनकी और उनके कार्यों की हमेशा सरहना की,, जिनमें महर्षि अरविन्द, लोकमान्य तिलक, मदनमोहन मालवीय, विनायक दामोदर सावरकर, बी. एस. मुंजे, बिट्ठलभाई पटेल, महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और के. एम. मुंशी जैसे नाम प्रमुख थे।

Tags: Great PatriotHindu New YearKeshav Rao Baliram HedgewarSpecial Article
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